सिवनी | मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के 31 वर्षीय सत्येंद्र यादव की जिंदगी एक सड़क हादसे में अचानक बदल गई। हादसे के बाद उन्हें गंभीर हालत में मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया, लेकिन 7 अगस्त को डॉक्टरों ने उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया। इस कठिन घड़ी में सत्येंद्र के परिवार ने ऐसा निर्णय लिया, जिसने कई ज़िंदगियों को नई सांस दी — उन्होंने अंगदान के लिए सहमति दे दी।
सत्येंद्र का दिल, लिवर और दोनों किडनियां अलग-अलग ज़रूरतमंद मरीजों को दी गईं। इनमें सबसे अनोखी कहानी उनके दिल की रही, जो सीमाओं को पार करते हुए इराक की 24 वर्षीय मेडिकल छात्रा नूर तक पहुंचा।
नूर की दो साल लंबी जंग
नूर पिछले दो साल से गंभीर हृदय रोग से पीड़ित थीं। इराक में तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें उपयुक्त डोनर नहीं मिल पाया। इसके बाद उन्होंने गुजरात स्टेट ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (SOTTO) में अपना नाम दर्ज कराया, उम्मीद थी कि शायद भारत में उन्हें नया दिल मिल सके।
अंग आवंटन की प्रक्रिया
नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (NOTTO) के नियमों के तहत, अंगदान के बाद सबसे पहले उसी राज्य में ज़रूरतमंद मरीजों को प्राथमिकता दी जाती है। सत्येंद्र का दिल जबलपुर में उपलब्ध हुआ, लेकिन उस वक्त पूरे मध्यप्रदेश में कोई ऐसा मरीज नहीं था जिसे तत्काल हृदय प्रत्यारोपण की आवश्यकता हो।
प्रोटोकॉल के अनुसार, अंग को अगले प्राथमिकता वाले राज्य को भेजा गया इस बार वह गुजरात था। वहां भी कोई भारतीय मरीज उस वक्त योग्य नहीं निकला, तो विशेष अनुमति लेकर यह दिल नूर को आवंटित किया गया। अहमदाबाद के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में डॉक्टरों की टीम ने सफलतापूर्वक हार्ट ट्रांसप्लांट किया।
बाकी अंगों ने भी बचाई जान
दिल के अलावा, सत्येंद्र का लिवर भोपाल के एक गंभीर मरीज को दिया गया। वहीं, एक किडनी जबलपुर के मरीज को और दूसरी किडनी राज्य के दूसरे शहर के रोगी को ट्रांसप्लांट की गई। इस तरह, एक ही व्यक्ति के अंगदान से चार लोगों को नई जिंदगी मिली।
