झारखंड के धनबाद जिले के एक छोटे से गांव से निकला 25 साल का एक युवा आज अपनी मेहनत और संघर्ष से हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुका है। नाम है किशन तांती और उनका स्टार्टअप “वाव इडली” अब एक ऐसा ब्रांड बन चुका है। जिसका इंतजार बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक करते हैं। साल 2025 की शुरुआत में उन्होंने हाइजिन और सस्ती कीमत पर स्वादिष्ट इडली बेचने की शुरुआत की थी। शुरू में रोज़ाना की कमाई मुश्किल से 2000 रुपए तक पहुंचती थी, लेकिन सिर्फ छह महीने में यह आंकड़ा 50 हजार तक जा पहुंचा।
संघर्ष की कहानी
किशन की ज़िंदगी कभी आसान नहीं रही। पिता नुक्कड़ पर गोलगप्पे बेचकर घर चलाते थे। आर्थिक हालात इतने कमजोर थे कि किशन को 12वीं की पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी। कभी कंपाउंडर की नौकरी की, कभी लैबोरेट्री में काम किया। फिर कैमरा खरीदकर शादियों में फोटो-वीडियो शूट करना शुरू किया।लॉकडाउन से पहले उन्होंने यूट्यूब चैनल भी बनाया, लेकिन अचानक बंद हो गया। स्टेशन पर खाना बेचने की कोशिश की, पर एक महीने भी बिजनेस नहीं चला। लगातार असफलताओं और तनाव ने उन्हें डिप्रेशन में धकेल दिया।
तीन महीने बाद जब धीरे-धीरे सामान्य हुए तो उन्होंने सिर्फ 3–5 हजार रुपए लगाकर इडली का कारोबार शुरू किया। यही फैसला उनकी ज़िंदगी का टर्निंग प्वाइंट बना।
सोशल मीडिया से मिला सहारा
किशन ने अपने काम की छोटी-छोटी वीडियो बनाकर फेसबुक, यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर डालनी शुरू कीं। देखते ही देखते उनके वीडियो पर लाखों व्यूज़ आने लगे और अब उनके कंटेंट पर एक मिलियन से ज्यादा व्यूज़ मिलते हैं।
स्वाद और कीमत दोनों में खास
“वाव इडली” की सबसे बड़ी खासियत हाइजिन और सस्ती दर है। जहां दूसरी जगह इडली 50–60 रुपए प्लेट बिकती है, वहीं किशन 20 रुपए में तीन पीस इडली सांभर और घर की बनी चटनी के साथ परोसते हैं। रोजाना 400 पीस इडली तो ऑन-लोकेशन जाते ही खत्म हो जाती है। एक बार उन्होंने सिर्फ एक दिन के लिए होम डिलिवरी की और 3,500 प्लेट का ऑर्डर मिला। इससे करीब 70,000 रुपए की कमाई हुई। ऑर्डर इतना बड़ा था कि उनकी वेबसाइट तक क्रैश हो गई।
View this post on Instagram
परिवार और दोस्तों का साथ
किशन कहते हैं कि उनके इस सफर में सबसे बड़ा योगदान परिवार और दोस्तों का रहा। मां गीता देवी, पिता अनिल तांती, नानी, भाई-बहन और भाभी – सभी ने हर कदम पर साथ दिया। वहीं, दोस्त रितिक, गुड्डू, संदीप और आयुष, सुमित जैसे करीबियों ने भी उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ा।
अब किशन तांती सिर्फ ठेले या अस्थायी स्टॉल तक सीमित नहीं रहना चाहते। उनका सपना है कि खुद का कैफे खोलें और आसपास के युवाओं को रोजगार भी दें। इसके साथ ही, वे पांच किलोमीटर के दायरे में फ्री होम डिलिवरी शुरू करने की योजना बना रहे हैं।
हौसले का उदाहरण
एक वक्त था जब घर चलाने के लिए वे 40 रुपए रोज कमाते थे। उनके घर की स्थिति भी ठीक नहीं है। इसके बावजूद उन्होंने अपने चेहरे पर कभी भी निराशा नहीं आने दिया और आज वे हजारों लोगों को इडली के ज़रिए खुशियां बांट रहे हैं। किशन तांती की यह कहानी सिर्फ एक स्टार्टअप की नहीं, बल्कि उस हौसले की है जो कठिन हालात में भी हार मानने से इंकार कर देता है।