भोपाल | मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद, विकासखंड फंदा, जिला भोपाल द्वारा बुधवार को संत हिरदाराम नगर के झूलेलाल मंदिर परिसर में “माटी गणेश सिद्ध गणेश” कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। यह कार्यक्रम घर-घर गणेश, हर घर गणेश अभियान के अंतर्गत आयोजित किया जा रहा है।
कार्यक्रम का शुभारंभ परिषद के उपाध्यक्ष मोहन नगर और कार्यपालक निदेशक बकुल लाड द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। इस अवसर पर संभाग समन्वयक अमिताभ श्रीवास्तव, भोपाल संभाग समन्वयक वरुण आचार्य, जिला समन्वयक कोकिला चतुर्वेदी और विकासखंड समन्वयक नंदकिशोर मालवीय मौजूद रहे। कार्यक्रम में नवांकुर चयनित संस्था लुवाणा एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष कैलाश लुवाणा, झूलेलाल समिति के सदस्य तथा क्षेत्र के नागरिक भी शामिल हुए।
स्कूली बच्चों ने लिया भाग
इस कार्यशाला में 41 स्कूली बच्चों ने भाग लिया, जिन्हें कलाकार जितेंद्र राठौर ने मिट्टी से गणेश प्रतिमा बनाना सिखाया। कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चों और युवाओं को पर्यावरण अनुकूल गणेश प्रतिमाओं के निर्माण के लिए प्रेरित करना है, ताकि गणेश चतुर्थी के दौरान नदी-तालाबों में प्रदूषण कम किया जा सके। यह प्रशिक्षण 20 अगस्त से 25 अगस्त तक प्रतिदिन आयोजित होगा, जिसमें प्रतिभागियों को प्रत्यक्ष अभ्यास और मार्गदर्शन दिया जाएगा।
🌿माटी गणेश – सिद्ध गणेश अभियान
मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद एवं नर्मदा समग्र का संयुक्त अभियान
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अभियान का लक्ष्य
आयोजकों ने बताया कि पारंपरिक तरीके से बनाए जाने वाले पॉप्स और केमिकल युक्त गणेश प्रतिमाओं से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, जबकि मिट्टी की प्रतिमाएं आसानी से जल में घुल जाती हैं और जलस्रोतों को सुरक्षित रखती हैं। “माटी गणेश सिद्ध गणेश” अभियान का लक्ष्य है कि अधिक से अधिक परिवार मिट्टी की प्रतिमाओं का उपयोग करें और स्वच्छता व पर्यावरण संरक्षण में योगदान दें।
गणेश चतुर्थी का महत्व
गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म का प्रमुख उत्सव है, जो हर साल भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इसे विघ्नहर्ता, मंगलकर्ता भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गोवा और कर्नाटक सहित देश के कई राज्यों में इस पर्व का विशेष महत्व है।
सौभाग्य का देवता
भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य का देवता माना जाता है। परंपरा के अनुसार, गणेश चतुर्थी पर घर-घर में गणेश जी की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और श्रद्धालु दस दिनों तक उनकी पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दौरान भजन-कीर्तन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और सामाजिक गतिविधियां भी आयोजित की जाती हैं।
