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NDA में सीट बंटवारे पर लगी मुहर, जेडीयू-बीजेपी को बराबर हिस्सेदारी; चिराग को मिला बड़ा मौका

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Published On: 12 October 2025

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर NDA के अंदर चल रही खींचतान आखिरकार खत्म हो गई है। कई दौर की बैठकों और गहन चर्चाओं के बाद रविवार को सीटों के बंटवारे का औपचारिक ऐलान कर दिया गया। इस बार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) को बराबर-बराबर सीटें दी गई हैं, जो गठबंधन की अंदरूनी राजनीति के लिहाज से बड़ा संतुलन दिखाता है। बीजेपी नेता धर्मेंद्र प्रधान और जेडीयू के वरिष्ठ नेता संजय झा ने सोशल मीडिया पर साझा बयान जारी कर इस समझौते की पुष्टि की।

डीयू-बीजेपी बराबर

नई व्यवस्था के तहत बीजेपी और जेडीयू, दोनों ही 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। यह पहली बार है जब दोनों दलों को बराबर सीटें मिली हैं। इसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच “संतुलित गठबंधन” की मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है।
दोनों दलों ने अपने-अपने स्तर पर उम्मीदवारों की सूची तैयार करना भी शुरू कर दिया है।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस बंटवारे से यह साफ संदेश गया है कि एनडीए में न तो कोई “बड़ा भाई” है, न “छोटा” — बल्कि साझेदारी समान है।

चिराग पासवान को 29 सीटें

लोजपा (रामविलास) के नेता चिराग पासवान को गठबंधन में 29 सीटें दी गई हैं। इसे एनडीए में उनकी राजनीतिक ताकत और युवाओं के बीच लोकप्रियता का संकेत माना जा रहा है। वहीं, जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) को 6-6 सीटों का हिस्सा मिला है।

इस बंटवारे से सभी सहयोगी दलों को संतुलित रूप से साथ रखने की कोशिश दिखाई देती है ताकि चुनावी मैदान में एकजुट मोर्चा पेश किया जा सके।

एनडीए एकजुट

सीट बंटवारे की घोषणा के बाद धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, “एनडीए अब पूरी तरह एकजुट है। हमारा उद्देश्य सत्ता नहीं, सेवा है। बिहार के विकास को नई दिशा देने के लिए सभी दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे।”
वहीं जेडीयू के संजय झा ने कहा, “हमारा गठबंधन विकास, सुशासन और स्थिरता की गारंटी है। जनता पर हमें भरोसा है।”

संतुलन या समझौता?

हालांकि, राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी गर्म है कि बराबर सीटें मिलने के पीछे बीजेपी का रणनीतिक गणित छिपा है। पार्टी चाहती है कि नीतीश कुमार के साथ साझेदारी भी बनी रहे और भविष्य के लिए अपना जनाधार भी मजबूत किया जाए।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह बंटवारा न केवल संख्या का संतुलन है, बल्कि आने वाले चुनावी समीकरणों की दिशा तय करने वाला कदम भी साबित हो सकता है।

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