बिहार की राजनीति एक बार फिर लालू प्रसाद यादव की पुरानी शैली में गर्मा गई है। लोकसभा चुनाव के बाद अब विधानसभा की तैयारियों में जुटे लालू प्रसाद ने महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे की प्रक्रिया पूरी हुए बिना ही अपने पसंदीदा उम्मीदवारों को सिंबल देना शुरू कर दिया है। इस कदम से न केवल कांग्रेस बल्कि महागठबंधन के अन्य घटक दलों में भी हलचल मच गई है।
सूत्रों के अनुसार, रविवार रात दिल्ली से पटना लौटने के बाद राबड़ी आवास के बाहर भारी भीड़ जुटी थी। समर्थकों में यह चर्चा थी कि “लालू जी खुद उम्मीदवारों को टिकट दे रहे हैं।” देर रात कुछ नेताओं को पार्टी का सिंबल भी सौंप दिया गया, जिसके बाद सोशल मीडिया पर “टिकट मिलने” की खुशी झलकने लगी।
तेजस्वी ने लगाया विराम
दिल्ली से लौटे तेजस्वी यादव इस स्थिति से खासे असहज बताए जा रहे हैं। उन्होंने पिता लालू प्रसाद से आग्रह किया कि सीट बंटवारे पर सहयोगी दलों से अंतिम बातचीत के बाद ही सिंबल वितरण हो। कांग्रेस की नाराजगी और महागठबंधन की एकता को देखते हुए फिलहाल सिंबल वितरण पर अस्थायी रोक लगा दी गई है।
हालांकि, राजद के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि यह “विराम” ज्यादा लंबा नहीं चलेगा, क्योंकि लालू प्रसाद अपने राजनीतिक अनुभव के दम पर ऐसे दबावों से निपटने में माहिर हैं।
कांग्रेस ने जताई कड़ी आपत्ति
कांग्रेस ने लालू के इस कदम को महागठबंधन की भावना के खिलाफ बताया है। पार्टी के रणनीतिकारों ने तेजस्वी यादव को संदेश भेजकर कहा कि यदि ऐसी स्थिति बनी रही तो सीट बंटवारे की प्रक्रिया बाधित हो सकती है।
बताया जा रहा है कि कहलगांव सीट को लेकर सबसे ज्यादा विवाद हुआ। लालू ने यह सीट झारखंड के मंत्री संजय यादव के पुत्र रजनीश को देने का संकेत दिया था, जबकि कांग्रेस इसे अपनी परंपरागत सीट मानती है। अंततः तेजस्वी के हस्तक्षेप के बाद यह निर्णय फिलहाल रोक दिया गया।
पुराने अनुभवों से सीख
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 2010 के विधानसभा चुनाव में राजद और कांग्रेस के अलग-अलग लड़ने का नतीजा दोनों पार्टियों ने भुगता था। इस बार कांग्रेस पहले से ही सतर्क है और किसी “दोस्ताना संघर्ष” की स्थिति से बचना चाहती है।
तेजस्वी भी यह समझते हैं कि अगर कांग्रेस अलग राह पकड़ती है, तो इसका नुकसान राजद को भी उठाना पड़ेगा।
