इंदौर के सरकारी एमआर टीबी अस्पताल में रोजमर्रा की धुलाई का मामला अब विवाद का विषय बन गया है। 94 बेड वाले इस अस्पताल में रोजाना औसतन 20 कपड़े भी नहीं धुलते, लेकिन बिल 94 कपड़ों का ही बनाया जाता है। जुलाई में अस्पताल को धुलाई का बिल 29 जुलाई तक 2914 कपड़ों का भेजा गया, जबकि हकीकत में सिर्फ 197 कपड़े ही धुल पाए थे।
धुलाई का टेंडर 6.89 रुपए प्रति कपड़े के हिसाब से लिया गया है। जुलाई के 31 दिनों में कंपनी ने 20,077 रुपए का बिल अस्पताल को भेजा, जबकि वास्तविक धुलाई इससे बहुत कम हुई। इसके अलावा 3,614 रुपए जीएसटी का अतिरिक्त चार्ज भी बिल में शामिल है। यानी असल में अस्पताल ने लगभग नौ गुना ज्यादा पैसे देने पड़ रहे हैं।
डॉ. श्रीवास्तव का बयान
अस्पताल के प्रभारी डॉ. आशुतोष श्रीवास्तव ने बताया कि टेंडर डॉक्यूमेंट के हिसाब से बिल बेड के आधार पर बनता है। चाहे 1 चादर धुलवाएं या 200, पेमेंट उतना ही करना पड़ता है। हालांकि, उनकी मानें तो अस्पताल में अक्सर 30 से 50 मरीज एक समय में भर्ती रहते हैं। त्योहारों या कम मरीजों के समय धुलाई की संख्या और भी घट जाती है।
गिनती और हकीकत में फर्क
कई बार एक बेड पर एक मरीज 2-3 चादर इस्तेमाल करता है, लेकिन टेंडर में हर बेड को केवल एक कपड़े की गिनती के हिसाब से धुलाई मान ली जाती है। इस वजह से असली धुलाई और बिल में भारी अंतर आ रहा है। जानकारों का कहना है कि अस्पताल में जहां 94 बेड से ज्यादा कपड़े निकल ही नहीं सकते, वहां इतनी बड़ी संख्या का बिल देना संदिग्ध है। माना जा रहा है कि टेंडर की शर्तों में जानबूझकर ऐसा फॉर्मूला रखा गया, जिससे सरकारी पैसे का अतिरिक्त वितरण संभव हो।
कंपनी का रवैया
धुलाई का काम करने वाली सतना की कंपनी शिवाय एसोसिएट्स ने जुलाई का बिल अस्पताल को सौंपा। इनमें 15 दिन में सिर्फ 197 कपड़े ही धुल पाए, जबकि बिल 2,914 कपड़ों का भेजा गया। 16 दिन तक एक भी कपड़ा धुलने नहीं दिया गया।
