महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय (GMC) इंदौर के डीन ने हाल ही में एक आदेश जारी किया है, जिसमें समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रकाशित खबरों की निगरानी करने और भ्रामक समाचार का खंडन करने के निर्देश दिए गए हैं। इस कदम को लेकर पत्रकारों और मीडिया हाउस में गंभीर चिंता और नाराजगी व्याप्त है। मीडिया के लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला और डीन की प्रशासनिक विफलताओं को छिपाने का प्रयास मान रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया संगठनों के प्रतिनिधियों का कहना है कि डीन स्वयं अपनी जिम्मेदारियों से भागने के लिए अधीक्षक और विभागाध्यक्षों को आगे कर रहे हैं।
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ
विशेषज्ञों और मीडिया कर्मियों का कहना है कि लोकतंत्र में मीडिया चौथा स्तंभ है। इसका काम ही है शासन, प्रशासन और संस्थाओं में हो रही अव्यवस्था, अनियमितता या भ्रष्टाचार को उजागर करना। डीन का यह आदेश मीडिया को “भ्रामक” बताने का प्रयास करता है, जबकि वास्तव में मीडिया केवल जनता तक सच्चाई और वास्तविकता पहुँचाने का कार्य कर रहा है।
डीन की बौखलाहट
मीडिया विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम डीन की बौखलाहट और प्रबंधन की विफलता को उजागर करता है। डीन हमेशा यह अपेक्षा रखते हैं कि सिर्फ उनके मनपसंद समाचार ही प्रकाशित हों। लेकिन जब मीडिया सच्चाई दिखाती है, तो प्रशासन इसे दबाने की कोशिश करता है। विशेषज्ञों ने कहा कि एक सही और पारदर्शी प्रशासन को आलोचना से डरना नहीं चाहिए। जवाबदेही और खुलापन ही जनता का भरोसा कायम रख सकता है।

पत्रकारों और संगठनों की प्रतिक्रिया
इंदौर के मीडिया संगठनों ने आदेश को गंभीरता से लिया है और इसे लोकतंत्र के लिए खतरे का संकेत बताया है। उन्होंने कहा कि कोई भी प्रशासनिक अधिकारी या संस्था मीडिया की स्वतंत्र जांच और रिपोर्टिंग को रोक नहीं सकता। पत्रकारों ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर इस आदेश के चलते मीडिया की स्वतंत्रता पर रोक लगाई गई, तो वह कानूनी और लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करेगी।
