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डीजीपी के हलफनामे पर भड़का हाईकोर्ट, सही जानकारी छुपाने वालों को बचाया जा रहा है; मांगा जवाब

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Published On: 31 October 2025

मध्यप्रदेश के डीजीपी कैलाश मकवाना के हलफनामे पर ग्वालियर हाईकोर्ट की एकल पीठ ने तीखी नाराजगी जाहिर की है। यह मामला एसएएफ बटालियन-14 के आरक्षक रजनेश सिंह भदौरिया की विभागीय जांच से जुड़ा है। कोर्ट ने साफ कहा कि राज्य सरकार एक तरफ दावा करती है कि जांच नियमों के मुताबिक हुई, वहीं दूसरी तरफ उन्हीं अफसरों को बचाने में लगी है, जिन्होंने अदालत के सामने अधूरा और भ्रामक जवाब पेश किया। कोर्ट ने सवाल उठाया कि अगर सरकार को अपने फैसले पर भरोसा है, तो फिर उसने पुनर्विचार याचिका (रिव्यू पिटीशन) क्यों लगाई?

अदालत ने इस मामले में असिस्टेंट कमांडेंट शैलेंद्र भारती की भूमिका पर गंभीर टिप्पणी की। जज ने कहा कि भारती का जवाब “टालमटोल वाला और जानबूझकर भ्रामक” था। कोर्ट ने स्पष्ट कहा, “ओआईसी (ऑफिसर इन चार्ज) किसी कर्मचारी की मदद करने के लिए नहीं, बल्कि शासन की ओर से सही तथ्य अदालत के सामने रखने के लिए नियुक्त किए जाते हैं।”

डीजीपी के हलफनामे पर उठे सवाल

राज्य शासन ने हाईकोर्ट के आदेश के बाद डीजीपी से जवाब मांगा था। डीजीपी कैलाश मकवाना ने अपने हलफनामे में लिखा कि तत्कालीन ओआईसी शैलेंद्र भारती की कोई दुर्भावना नहीं थी, इसलिए उनके खिलाफ कोई कार्रवाई जरूरी नहीं। यानी डीजीपी ने अधिकारी का बचाव किया। इसी बात पर कोर्ट ने नाराजगी जताई और कहा कि यह रवैया शासन की “साफगोई पर सवाल” खड़ा करता है। हाईकोर्ट ने अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) से कहा कि वे डीजीपी के इस आदेश को अदालत के सामने ठोस तरीके से सही ठहराएं। जरूरत पड़ने पर डीजीपी खुद पूरक हलफनामा जमा करें।

क्या है पूरा मामला

मामला ग्वालियर की एसएएफ बटालियन-14 के आरक्षक रजनेश सिंह भदौरिया से जुड़ा है। उनका आरोप था कि विभागीय जांच में न तो कोई प्रेजेंटिंग ऑफिसर नियुक्त किया गया, और न ही उन्हें उचित मौका दिया गया। जांच अधिकारी ने खुद ही अभियोजन की भूमिका निभाई, जो नियमों के खिलाफ था। रजनेश ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। 28 अगस्त 2024 को कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद राज्य सरकार ने फैसले पर रिव्यू पिटीशन दायर की, जिस पर अब यह नई सुनवाई चल रही है।

अब 7 नवंबर को होगी अगली सुनवाई

अदालत ने डीजीपी से इस पूरे मामले पर लिखित स्पष्टीकरण मांगा है। अगली सुनवाई की तारीख 7 नवंबर 2025 तय की गई है। हाईकोर्ट ने साफ संकेत दिए हैं कि अगर जवाब संतोषजनक नहीं हुआ, तो अफसरों की जिम्मेदारी तय की जा सकती है।

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