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उज्जैन सिंहस्थ 2028 से पहले अखाड़ों में बढ़ी तकरार, शैव और वैष्णव संप्रदाय आमने-सामने; माहौल गरमाया

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Published On: 3 December 2025

उज्जैन में 2028 के सिंहस्थ कुंभ की तैयारियों के बीच शैव और वैष्णव अखाड़ों के बीच तनातनी ने नया मोड़ ले लिया है। दोनों पक्षों की अलग-अलग बैठकों और तीखे बयानों ने संत समुदाय में असहज स्थिति पैदा कर दी है। विवाद इस कदर बढ़ गया कि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पूरी ने संभावित टकराव तक की चेतावनी दे डाली। तनाव की शुरुआत रविवार से मानी जा रही है, जब स्थानीय अखाड़ा परिषद के तीन पदाधिकारियों ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद शैव और वैष्णव परंपरा से जुड़े साधु-संत दो खेमों में बंट गए।

वैष्णव संतों ने अलग मोर्चा खोलते हुए “रामादल अखाड़ा परिषद” का गठन किया और नई कार्यकारिणी की घोषणा कर दी। वैष्णव संतों का कहना है कि अब सिंहस्थ की तैयारियों पर वे शैव अखाड़ों के साथ संयुक्त रूप से चर्चा नहीं करेंगे।

अखाड़ा परिषद की कड़ी चेतावनी

मंगलवार को अखाड़ा परिषद अध्यक्ष रविंद्र पूरी मीडिया के समक्ष आए और तेज बयान दिए। पूरी ने कहा कि रामादल के अध्यक्ष रामेश्वर दास महाराज के हालिया बयानों ने सन्यासी समुदाय में गहरी नाराजगी पैदा कर दी है। उन्होंने कहा, “संन्यासी एकजुट हैं, हालात विवाद या मारपीट तक पहुंच सकते हैं।”
पूरी ने स्पष्ट चेतावनी दी कि कुंभ आयोजन की जिम्मेदारी अखाड़ा परिषद की है, इसलिए प्रशासन से सीधे संपर्क करने का अधिकार रामादल के पास नहीं है। परिषद का कहना है कि रामादल केवल निजी या व्यक्तिगत मामलों में प्रशासन से संवाद कर सकता है, सिंहस्थ से जुड़े निर्णय परिषद ही लेगी।

रामादल का पलटवार

बुधवार को रामादल अखाड़े के नए अध्यक्ष रामेश्वर दास महाराज ने अपने पक्ष में खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य विवाद खड़ा करना नहीं है, बल्कि सिंहस्थ से जुड़े मुद्दों पर प्रशासन के साथ तालमेल बढ़ाना है। रामेश्वर दास का कहना है कि तीन पदाधिकारियों के इस्तीफे के बाद समितियों का पुनर्गठन जरूरी था। उन्होंने यह भी कहा कि संतों और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए प्रशासन से संवाद जारी रहेगा। उनके मुताबिक, “सिंहस्थ की तैयारियों में सक्रिय भूमिका निभाना हमारी जिम्मेदारी है।”

प्रशासन की बढ़ी चिंता

दोनों धड़ों के बीच बढ़ती दूरी अब सिंहस्थ की तैयारियों पर सीधे असर डाल रही है। कुंभ जैसी विशाल धार्मिक आयोजन की सफलता अखाड़ों के समन्वय पर निर्भर करती है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियां प्रशासन के लिए नई चुनौती बन गई हैं। अधिकारियों को डर है कि यदि विवाद जल्द नहीं सुलझा, तो व्यवस्थाओं में देरी और भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है। आने वाले दिनों में दोनों पक्षों का रुख सिंहस्थ की तैयारियों का भविष्य तय करेगा।

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