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भोपाल: 10वीं शताब्दी की गौरी कामदा प्रतिमा का आधुनिक पुनर्जीवन, गोहर महल में प्रदर्शित होगी दुर्लभ कास्टिंग

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Published On: 7 December 2025

भोपाल में कला और विरासत संरक्षण से जुड़ी एक अनोखी पहल चर्चा का विषय बनी हुई है। नर्मदापुरम स्थित रफतांड रीजन स्टार्टअप ने 10वीं शताब्दी की दुर्लभ ऐतिहासिक प्रतिमा ‘गौरी कामदा’ को स्टोन डस्ट कास्टिंग तकनीक के जरिए पुनर्सृजित किया है। यह प्रतिकृति महज एक कलाकृति नहीं, बल्कि भारतीय शिल्प परंपरा की उस स्मृति को पुनर्जीवित करने का प्रयास है, जो अब धीरे-धीरे इतिहास के पन्नों में धुंधली पड़ रही थी।

यह विशेष कास्टिंग 8 से 10 दिसंबर के बीच गोहर महल में आयोजित होने वाले हस्त शिल्प हैकेथॉन का हिस्सा होगी। आयोजन से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रविष्टि केवल तकनीकी कौशल का परिचय नहीं देती, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर के प्रति बढ़ते जागरूकता को भी सामने रखती है। आयोजन में इसे एक प्रेरणात्मक मॉडल के रूप में देखा जा रहा है, जो परंपरागत कला को आधुनिक मंच पर लेकर आता है।

बीजावाड़ा क्षेत्र की मूल प्रतिमा

दिव्य आभा लिए 15×6 इंच की यह कास्टिंग देवास जिले के बीजावाड़ा क्षेत्र में मिली 10वीं शताब्दी की मूल प्रतिमा पर आधारित है। कला समीक्षकों के मुताबिक यह कास्टिंग उस काल की सौंदर्य दृष्टि, मूर्तिकला परंपरा और आध्यात्मिक अभिव्यक्ति को आज के समय में नए रूप में प्रस्तुत करती है। टीम का कहना है कि स्टोन डस्ट तकनीक ने इसे न सिर्फ प्रामाणिक बनाया, बल्कि मूल प्रतिमा की सूक्ष्म रेखाओं और भावभंगिमा को भी सजीव रखा है।

परंपरा और आधुनिकता का अनोखा संगम

स्टार्टअप का उद्देश्य सिर्फ एक दुर्लभ कला रूप को संरक्षित करना नहीं, बल्कि उसे आज की डिज़ाइन और सांस्कृतिक दुनिया में नई पहचान दिलाना है। प्रदर्शनी आयोजकों का मानना है कि यह पहल आने वाली पीढ़ियों को भारतीय मूर्तिकला की गौरवशाली विरासत से जोड़ने का मजबूत माध्यम बन सकती है। खास बात यह है कि कृति आधुनिक संग्रहणीय वस्तुओं की श्रेणी में भी अपनी जगह बना सकती है।

ब्रास म्यूज़िशियन सेट भी आकर्षण का केंद्र

राष्ट्रीय हस्तशिल्प सप्ताह के दौरान, कोलार डायनेमिक्स स्टार्टअप ने भी मध्यप्रदेश के कारीगरों के साथ मिलकर एक खास ब्रास म्यूज़िशियन सेट तैयार किया है। लगभग 20 इंच चौड़ा और 6 इंच लंबा यह सेट शहनाई और तबला वादकों 2 पुरुष और 2 महिला कलाकारों को दर्शाता है। कारीगरों के अनुसार यह रचना ग्वालियर घराने की संगीत परंपरा को सम्मान देती है और शास्त्रीय संगीत प्रेमियों के लिए एक अनोखा संग्रहणीय पीस साबित हो सकती है।

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