राजधानी भोपाल के AIIMS अस्पताल में ब्लड प्लाज्मा की चोरी का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। पुलिस ने एक अंतरराज्यीय गिरोह का पर्दाफाश किया है, जिसने एम्स भोपाल के ब्लड बैंक से 1150 यूनिट एफएफपी (फ्रेश फ्रोजन प्लाज्मा) चोरी कर महाराष्ट्र की दो निजी लैब्स को बेच दिया था। यह प्लाज्मा 5800 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से बेचा गया था। पुलिस ने 6 आरोपियों को गिरफ्तार कर 1123 यूनिट प्लाज्मा जब्त किया है, जिसकी कीमत करीब 11.72 लाख रुपए बताई जा रही है।
पूरे मामले का खुलासा एडिशनल डीसीपी गौतम सोलंकी ने बुधवार को किया। उन्होंने बताया कि एम्स के प्रभारी सुरक्षा अधिकारी ज्ञानेंद्र प्रसाद ने 29 सितंबर को ब्लड बैंक में प्लाज्मा चोरी की शिकायत दर्ज कराई थी। जांच के दौरान ब्लड बैंक इंचार्ज डॉक्टर प्रतूल सिन्हा के बयान लिए गए, जिनसे मामले की पुष्टि हुई।
प्लाज्मा चोरी
जांच में पाया गया कि ब्लड बैंक के आउटसोर्स कर्मचारी अंकित केलकर ने अपने साथियों अमित जाटव और लक्की पाठक के साथ मिलकर 18 से 27 सितंबर के बीच प्लाज्मा चोरी की साजिश रची। अंकित का एम्स में कार्यकाल 30 सितंबर को खत्म होने वाला था, इसलिए उसने टेंडर समाप्त होने से पहले यह काम निपटाने की योजना बनाई। पुलिस ने जब उसे हिरासत में लेकर पूछताछ की, तो उसने पूरी वारदात कबूल कर ली।
महाराष्ट्र से कनेक्शन
आरोपियों ने चोरी किया हुआ प्लाज्मा लक्की पाठक के भाई दीपक पाठक के जरिए महाराष्ट्र भेजा, जहां नासिक के श्याम बडगुजर और औरंगाबाद के करण चव्हाण ने इसे खरीदा। ये दोनों निजी ब्लड बैंक चलाते हैं और वहां से प्लाज्मा फार्मा कंपनियों को सप्लाई किया जाता था, जहां इसका उपयोग बायोमेडिकल दवाएं और एल्वोविन जैसी दवाएं बनाने में होता है।
कई ब्लड बैंक से संपर्क
पुलिस के मुताबिक, आरोपी दीपक पाठक पहले भी विभिन्न ब्लड बैंकों में काम कर चुका है और उसके महाराष्ट्र के कई ब्लड बैंक संचालकों से संपर्क थे। उसकी पत्नी भी भोपाल के एक ब्लड बैंक में नौकरी करती थी और उसने डीएमएलटी कोर्स किया हुआ है। इसी नेटवर्क का फायदा उठाकर गिरोह ने चोरी किए प्लाज्मा को बेचने की डील की।
गिरफ्तार आरोपियों में अंकित केलकर, अमित जाटव, लक्की पाठक, दीपक पाठक, श्याम बडगुजर और करण चव्हाण शामिल हैं। पुलिस अब यह जांच कर रही है कि क्या इस रैकेट में और भी ब्लड बैंक या अस्पताल के कर्मचारी शामिल हैं। फिलहाल आरोपियों से आगे की पूछताछ जारी है, और यह मामला चिकित्सा संस्थानों की सुरक्षा व्यवस्थाओं पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।
