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MP पुलिस मुख्यालय में 15 लाख की मेडिकल बिल घोटाला, 3 अधिकारी फर्जीवाड़े में शामिल; FIR के बाद फरार

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Published On: 16 October 2025

MP पुलिस मुख्यालय में बड़ा वित्तीय घोटाला सामने आया है। मेडिकल शाखा में पदस्थ अधिकारियों ने पुलिस ट्रेनिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (PTRI) के 25 कर्मचारियों के नाम पर फर्जी मेडिकल बिल तैयार कर करीब 15 लाख रुपए का गबन कर लिया। इस मामले में 3 अधिकारी प्रभारी एएसआई हर्ष वानखेड़े, तत्कालीन आंकिक कैशियर सूबेदार नीरज कुमार और सहायक स्टाफ प्रधान आरक्षक राजपाल ठाकुर मुख्य आरोपी बनाए गए हैं। एफआईआर दर्ज होने के बाद तीनों आरोपी फरार हैं।

मेडिकल बिल पास

पूरा मामला उस समय खुला जब PTRI के कुछ कर्मचारियों ने संयुक्त आवेदन देकर शिकायत की कि उनके नाम पर मेडिकल बिल पास किए गए हैं, जबकि उन्होंने कोई दावा ही नहीं किया था। मुख्यालय स्तर पर की गई प्राथमिक जांच में पाया गया कि वर्ष 2023 से लेकर जुलाई 2025 तक आरोपियों ने 25 कर्मचारियों के नाम पर मेडिकल बिल बनाकर विभागीय कोष से भुगतान मंजूर करवाया और राशि अपने निजी खातों में ट्रांसफर करा ली।

टीआई सी.बी. राठौर के अनुसार, फरियादी डीएसपी ओ.पी. मिश्रा ने मंगलवार को इस फर्जीवाड़े का प्रतिवेदन पुलिस मुख्यालय को सौंपा था। इसके आधार पर बुधवार को जहांगीराबाद थाने में धोखाधड़ी और कूटरचना की धाराओं में मामला दर्ज किया गया है।

मामला दर्ज

जांच में सामने आया कि आरोपी कर्मचारियों के खातों में रकम ट्रांसफर होने के बाद उन्हें फोन कर बताते थे कि मेडिकल शाखा से गलती से भुगतान चला गया है। इसके बाद वे कर्मचारियों से उनके बैंक खातों के विवरण लेकर रकम वापस अपने खातों में ट्रांसफर करवा लेते थे। इस तरह सुनियोजित तरीके से लाखों रुपये हड़प लिए गए। सूत्रों के मुताबिक, इस घोटाले में मुख्य भूमिका निभाने वाले एएसआई हर्ष वानखेड़े मेडिकल शाखा में लंबे समय से पदस्थ थे और उन्हें बिल पासिंग प्रक्रिया की पूरी जानकारी थी। नीरज कुमार और राजपाल ठाकुर ने भी दस्तावेज तैयार करने और हस्ताक्षर कराने में सहयोग किया।

पुलिस ने तीनों के खिलाफ धारा 420 (धोखाधड़ी), 467 (कूटरचना), 468 (धोखाधड़ी के इरादे से जालसाजी) और 471 (फर्जी दस्तावेजों का उपयोग) के तहत मामला दर्ज किया है।

सस्पेंड

जहांगीराबाद पुलिस ने बताया कि तीनों आरोपियों को करीब एक हफ्ते पहले ही सस्पेंड किया गया था। अब उनके ठिकानों पर दबिश दी जा रही है। इस मामले ने पुलिस विभाग की आंतरिक प्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं, क्योंकि आरोपी लंबे समय तक बिना जांच के फर्जी बिल पास करते रहे।

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