भोपाल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) ने पुरानी कमर दर्द (क्रॉनिक लो बैक पेन) के मरीजों के लिए नई उम्मीद जगाई है। अब तक इस दर्द के इलाज के लिए केवल पेनकिलर, स्प्रे, ट्यूब या सर्जरी ही विकल्प थे, लेकिन एम्स भोपाल ने बिना दवा और बिना सर्जरी के समाधान खोज निकाला है। यह शोध एम्स की ट्रांसक्रैनियल मैग्नेटिक स्टिमुलेशन (टीएमएस) लैब में हुआ और हाल ही में जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में आयोजित इंटरनेशनल यूनियन ऑफ फिजियोलॉजिकल साइंसेज (IUPS 2025) कांग्रेस में प्रस्तुत किया गया।
क्या है टीएमएस तकनीक?
एम्स भोपाल के फिजियोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. (डॉ.) संतोष वाकोड़े ने बताया कि “इफेक्ट ऑफ रेपेटिटिव ट्रांसक्रैनियल मैग्नेटिक स्टिमुलेशन इन पेशेंट्स विद लो बैक पेन” एक कारगर और नॉन-इनवेसिव तकनीक है। इसमें मरीज के सिर की खोपड़ी पर एक विशेष कॉइल रखी जाती है, जिसके जरिए चुंबकीय तरंगें भेजी जाती हैं। यह तरंगें मस्तिष्क की सतह (कॉर्टेक्स) पर मौजूद न्यूरॉन्स को हल्के विद्युत संकेतों से उत्तेजित करती हैं। इससे निष्क्रिय न्यूरल सर्किट दोबारा सक्रिय होते हैं और नए न्यूरल कनेक्शन बनने लगते हैं। नतीजतन, न सिर्फ पुराना दर्द कम होता है बल्कि याददाश्त, सीखने की क्षमता और मानसिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर पड़ता है।
60 मरीजों पर सफल परीक्षण
इस शोध में 60 मरीज शामिल किए गए, जिन्हें लंबे समय से कमर दर्द की समस्या थी। इनमें से 30 मरीजों को वास्तविक टीएमएस थेरेपी दी गई, जबकि शेष 30 को केवल कॉइल पहनाई गई पर थेरेपी नहीं दी गई। करीब डेढ़ माह बाद किए गए विश्लेषण में पाया गया कि जिन मरीजों को वास्तविक टीएमएस दी गई, उनमें 70 से 80% तक दर्द में कमी दर्ज की गई।
टीएमएस थेरेपी के फायदे
- गतिशीलता में सुधार: मरीज अधिक सक्रिय और चुस्त महसूस करने लगे।
- दर्द में राहत: पुराने दर्द से 90% तक आराम मिला।
- मानसिक स्वास्थ्य: नकारात्मकता कम हुई और सकारात्मक दृष्टिकोण बढ़ा।
- वर्क लाइफ बैलेंस: याददाश्त और सीखने की क्षमता में भी सुधार देखा गया।
पहली टीएमएस लैब
यह परियोजना विज्ञान एवं अभियांत्रिकी अनुसंधान बोर्ड (SERB, अब ANRF) से स्वीकृत हुई थी। इसी के तहत एम्स भोपाल में पहली बार टीएमएस लैब की स्थापना की गई, जो मध्यप्रदेश में न्यूरो मॉड्यूलेशन थेरेपी का नया अध्याय है। फ्रैंकफर्ट में हुए सम्मेलन में इस शोध को अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने खूब सराहा। डॉ. संतोष वाकोड़े के साथ इस शोध में डॉ. राजय भारशंकर, डॉ. रचना पराशर और डॉ. अवियंश ठाकरे सह-लेखक रहे।
