भोपाल का ऐशबाग ब्रिज, जिसे लोग “90 डिग्री वाला पुल” कहकर चर्चा में ला रहे हैं, अब राजनीति और अदालत दोनों जगह सुर्खियों में है। लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह ने इस मामले पर साफ कहा कि पुल को लेकर कोई तकनीकी समस्या नहीं है, बल्कि मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया। उन्होंने गुरुवार को जबलपुर में मीडिया से कहा, “पुल दरअसल 114 डिग्री का है, न कि 90 डिग्री का। देश और प्रदेश में ऐसे कई पुल और चौराहे हैं, जहां जगह की कमी के कारण इसी तरह डिजाइन बनानी पड़ती है। असली बात सेफ्टी की है और इस मामले में सारे नियमों का पालन हुआ है।”
मंत्री ने यह भी माना कि ठेकेदार और विभाग के बीच तालमेल की कमी रही, जिसके चलते कार्रवाई की गई। हालांकि, उन्होंने दोहराया कि तकनीकी तौर पर ब्रिज में कोई दिक्कत नहीं है और विभाग हाई कोर्ट को विस्तृत जवाब देने की तैयारी कर चुका है।
सरकार की बढ़ी मुश्किलें
दूसरी तरफ, बुधवार को हाईकोर्ट में हुई सुनवाई ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दीं। मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की बेंच में मौलाना आजाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (मैनिट) की जांच रिपोर्ट पेश की गई। रिपोर्ट में साफ लिखा था कि ठेकेदार ने वही काम किया जो पीडब्ल्यूडी ने नक्शे में दिखाया था। असल में नक्शे में पुल का एंगल 119 डिग्री बताया गया था, जबकि मौके पर बना एंगल 118 डिग्री से थोड़ा ज्यादा निकला। यानी लगभग बराबर।
तीखी टिप्पणी
रिपोर्ट पढ़ने के बाद मुख्य न्यायाधीश ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि जब ठेकेदार ने विभाग के निर्देशों के मुताबिक ही काम किया है तो उस पर कार्रवाई क्यों की गई? ठेकेदार को सजा नहीं, बल्कि मेडल मिलना चाहिए। इस पर सरकार की ओर से पेश वकील ने कोर्ट से समय मांगा। उन्होंने कहा कि उन्हें रिपोर्ट का अध्ययन करने और जवाब दाखिल करने का अवसर चाहिए। कोर्ट ने यह मांग मान ली और अब अगली सुनवाई 23 सितंबर को होगी।
कानूनी बहस का मुद्दा
कुल मिलाकर भोपाल का यह पुल अब केवल ट्रैफिक या डिजाइन का मामला नहीं रहा, बल्कि सरकार, विभाग और ठेकेदार के बीच जिम्मेदारी की लड़ाई का प्रतीक बन गया है। जहां सरकार पुल को सही ठहराने में जुटी है, वहीं हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि असली सवाल जिम्मेदारी तय करने का है। अब देखना होगा कि 23 सितंबर की सुनवाई में सरकार क्या जवाब देती है और अदालत इस पूरे विवाद पर क्या फैसला सुनाती है।