मध्यप्रदेश में लंबे समय से अटका 27 प्रतिशत OBC आरक्षण का मुद्दा अब फिर से गर्मा गया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाल ही में सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, ताकि इस मामले को जल्द सुलझाया जा सके। सुप्रीम कोर्ट में 22 सितंबर से इस पर रोजाना सुनवाई भी होनी है। इसी बीच राजधानी भोपाल में राजपूत करणी सेना और परशुराम सेवा संगठन ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार के फैसले पर नाराज़गी जताई। दोनों संगठनों का कहना है कि ओबीसी आरक्षण बढ़ाकर 27% करना सवर्ण समाज के साथ सीधा भेदभाव है।
ये लोग रहे मौजूद
प्रेस कॉन्फ्रेंस में परशुराम सेवा संगठन के प्रदेश अध्यक्ष सुनील पांडे, उपाध्यक्ष शिवकुमार शुक्ला, करणी सेना के प्रदेश अध्यक्ष सहेन्द्र सिंह दीखित, प्रदेश प्रवक्ता किरण सिंह राठौड़ सहित कई पदाधिकारी मौजूद रहे। इनका कहना था कि उन्हें किसी भी तरह के आरक्षण से आपत्ति नहीं है, लेकिन सरकार को संतुलन बनाकर फैसला लेना चाहिए। अगर ओबीसी को 27% आरक्षण दिया जाता है, तो सवर्ण समाज के गरीब वर्ग की अनदेखी होगी।
वोट बैंक की राजनीति: पांडे
सुनील पांडे ने कहा कि ईडब्ल्यूएस (EWS) वर्ग के गरीब बच्चों को सिर्फ 10% आरक्षण मिला है, जबकि ओबीसी को 27% देने की तैयारी है। यह असमानता क्यों? उनका कहना था कि हर साल ईडब्ल्यूएस वर्ग को आय प्रमाणपत्र देना पड़ता है, जबकि ओबीसी के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं है। इससे साफ है कि सरकार वोट बैंक की राजनीति कर रही है।
दी चेतावनी
वहीं, करणी सेना के प्रवक्ता किरण सिंह राठौड़ ने कहा कि यदि सरकार ने 27% ओबीसी आरक्षण लागू किया तो वे सड़कों पर उतरने से पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि आरक्षण के नाम पर सवर्णों को लगातार हाशिए पर धकेला जा रहा है, जबकि गरीब हर समाज में है। ऐसे में समान अवसर देने के बजाय भेदभाव की नीति अपनाना ठीक नहीं है।
दिल्ली में भी ओबीसी वर्ग के चयनित उम्मीदवारों और वकीलों की बैठक हो चुकी है। सरकार दावा कर रही है कि सुप्रीम कोर्ट में पूरी तैयारी के साथ पक्ष रखा जाएगा। लेकिन सवर्ण संगठनों का कहना है कि जब तक उन्हें न्याय नहीं मिलेगा, वे संघर्ष जारी रखेंगे।