भोपाल | मध्यप्रदेश सरकार (MP Govt) हर मंच से “कुपोषण मुक्त प्रदेश” के दावे करती है, लेकिन हाईकोर्ट में पेश हुई कैग रिपोर्ट और पोषण ट्रैकर 2.0 कुछ और ही तस्वीर दिखाते हैं। आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में 10 लाख से अधिक बच्चे अभी भी कुपोषण की चपेट में हैं। इनमें से करीब 1.36 लाख बच्चे अतिकुपोषित यानी गंभीर खतरे में हैं। वहीं, 57% महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैं, जो स्वास्थ्य तंत्र की बड़ी विफलता को उजागर करता है।
पोषण के नाम पर हुए खर्च
सबसे गंभीर बात यह है कि सरकार द्वारा बच्चों के पोषण के नाम पर करीब 1000 करोड़ रुपये खर्च किए गए, बावजूद इसके हालात जस के तस बने हुए हैं। इसमें से 858 करोड़ रुपये के पोषण घोटाले का मामला सामने आया है, जिसने जनकल्याण की योजनाओं को सिर्फ ‘कमाई का जरिया’ बना दिया है। अफसरों और सप्लायर्स की मिलीभगत से व्यवस्था के उस हिस्से में भी भ्रष्टाचार घुस गया है, जो समाज के सबसे नाजुक वर्ग बच्चों और महिलाओं से जुड़ा है।
नहीं हो रही निगरानी
रिपोर्ट के अनुसार, आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों की वास्तविक उपस्थिति बहुत कम है, लेकिन रिकॉर्ड में भोजन वितरण शत-प्रतिशत दिखाया जा रहा है। यानी कागजों में सब कुछ ठीक है, जबकि जमीन पर पोषण का नामोनिशान नहीं। न तो नियमित स्वास्थ्य परीक्षण हो रहे हैं और न ही पोषक तत्वों की उचित निगरानी की जा रही है।
एक खबर के मुताबिक मध्यप्रदेश में 0 से 6 वर्ष आयु के 25 लाख से अधिक बच्चे बौने एवं 16 लाख से अधिक बच्चों का वजन औसत से कम है। मध्यप्रदेश की आँगनबाड़ियों के बुरे हाल हैं।
क्या सरकार का मॉनिटरिंग सिस्टम इतना कमजोर हो चुका है कि करीब 41 लाख बच्चे उचित पोषण आहार की कमी से पूर्णतया… pic.twitter.com/vEqCpoX2hb
— Kamal Nath (@OfficeOfKNath) August 2, 2025
यह स्थिति तब है जब हर साल करोड़ों रुपये का बजट आंगनबाड़ियों, मातृ एवं शिशु कल्याण योजनाओं और पोषण मिशनों के लिए निर्धारित होता है। लेकिन यह पैसा जरूरतमंदों तक पहुंचने के बजाय भ्रष्ट तंत्र की जेबों में समा रहा है।
