भोपाल सहित MP के कई जिलों में दिवाली के दौरान बैन की गई कार्बाइड गनों ने बच्चों की आंखों की रोशनी छीन ली। राज्य स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, कम से कम 14 बच्चों की आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गई। ये कार्बाइड गन असल में जुगाड़ से बनाए गए छोटे विस्फोटक हैं, जिनका इस्तेमाल मज़ाक या उत्सव के दौरान किया जाता है। पिछले तीन दिनों में 122 से ज्यादा बच्चों की आंखों में चोट लग चुकी है। भोपाल में ही 186 केस दर्ज किए गए, जिनमें कॉर्निया जलने और रेटिना को नुकसान जैसी गंभीर चोटें शामिल हैं।
300 से ज्यादा हादसे
स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया कि पूरे राज्य में अब तक 300 मामले दर्ज किए जा चुके हैं। इनमें ज्यादातर मामले बच्चों के हैं। रासायनिक धमाके और तेज आवाज वाले विस्फोट ने ना सिर्फ आंखों को नुकसान पहुंचाया बल्कि कई बच्चों के लिए जीवनभर की तकलीफ और मानसिक तनाव भी छोड़ दिया। अस्पतालों में घायल बच्चों का इलाज जारी है, लेकिन कई मामलों में इलाज के बावजूद आंखों की रोशनी नहीं बच पाई।
कार्बाइड गन की हानिकारक प्रकृति
कार्बाइड गन में रासायनिक पदार्थ होते हैं, जो विस्फोट के समय अत्यधिक गर्मी और तेज़ प्रकाश उत्पन्न करते हैं। ये विस्फोट सीधे आंखों के कॉर्निया और रेटिना को नुकसान पहुंचाते हैं। स्वास्थ्य विभाग ने बार-बार चेतावनी दी थी कि बच्चे इन गनों से दूर रहें, लेकिन उत्साह और लापरवाही के कारण हादसे होते रहे। स्थानीय लोग कहते हैं कि इन गनों का इस्तेमाल “मजाक” या “धमाका दिखाने” के लिए किया जाता है, लेकिन इसके परिणाम बहुत गंभीर हैं।
भोपाल जिले में कार्बाइड गन के प्रयोग पर रोक लगाने के लिए धारा 163 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 के अंतर्गत प्रतिबंधात्मक आदेश जारी। @CMMadhyaPradesh @DrMohanYadav51 @JansamparkMP #Bhopal pic.twitter.com/s8Z84MgRt1
— PRO JS Bhopal (@probhopal) October 23, 2025
प्रशासन की चुप्पी
राज्य प्रशासन ने कुछ क्षेत्रों में कार्बाइड गनों पर प्रतिबंध लगाया है, लेकिन उसके बावजूद भी ये गन खुलेआम बिकती और इस्तेमाल होती रही। स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा कि अब सख्त निगरानी और जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। अस्पतालों में रेड क्रॉस और स्वास्थ्य विभाग द्वारा घायल बच्चों को फौरन आर्थिक और चिकित्सीय मदद दी जा रही है।
घायल बच्चों के परिवार सदमे में हैं। माता-पिता का कहना है कि उत्सव की खुशी अब उनके लिए सदमे और जीवनभर की तकलीफ बन गई है। प्रशासन और समाज दोनों से उम्मीद है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाएं, ताकि कोई और बच्चा अपनी रोशनी न खोए।
