खंडवा | संयुक्त कृषक संगठन जिला खंडवा ने फसल बीमा योजना की खामियों और किसानों को हो रहे नुकसान को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं। संगठन का कहना है कि बैंक और बीमा कंपनियां वास्तविक स्थिति की जांच किए बिना सेटेलाइट सर्वे और रैंडम प्लांट पद्धति से रिपोर्ट तैयार करती हैं, जिससे किसानों को उनके हक का मुआवजा नहीं मिल पाता।
संगठन के अनुसार, कई बार किसानों की वास्तविक फसल का बीमा ही नहीं होता, बल्कि बैंक उस फसल का बीमा कर देता है जिसके लिए ऋण स्वीकृत हुआ था। जब नुकसान होता है, तो बीमित फसल और असल में बोई गई फसल में अंतर के कारण मुआवजा देने से इंकार कर दिया जाता है। सेटेलाइट सर्वे में लगभग 80% तक का अंतर आता है, जबकि जमीनी सर्वे में सही नुकसान का आकलन संभव है।
कमीशनखोरी में लिप्तता का आरोप
आरोप है कि कुछ अधिकारी रिपोर्ट बनाते समय कमीशनखोरी में लिप्त रहते हैं और वास्तविक स्थिति को छुपाते हैं। किसानों को यह भी जानकारी नहीं दी जाती कि खरीफ सीजन में उन्हें व्यक्तिगत रूप से फसल खराबी की शिकायत दर्ज करनी होगी। नतीजतन, किसान घर बैठकर सामूहिक कार्रवाई के भरोसे रहते हैं और मुआवजे से वंचित रह जाते हैं।
संगठन ने बताया कि पिछले वर्षों में बीमा कंपनियों ने बिना जमीनी सर्वे और सूची तैयार किए जल्दबाजी में बीमा राशि बांटी, जिसमें वास्तविक पीड़ित किसान छूट गए। कई मामलों में 26% से अधिक नुकसान के बावजूद सेटेलाइट सर्वे में केवल नाममात्र की क्षति दर्ज हुई, जिससे किसानों को मामूली राशि मिली।
संगठन ने दी सलाह
इस साल भी किसानों को बैंक से बीमा पॉलिसी की सूचना संदेश के जरिए मिल रही है। संगठन ने सलाह दी है कि किसान अपनी बोई गई फसल और रकबे की जानकारी लिखित में बैंक को दें और नुकसान होने पर तुरंत व्यक्तिगत शिकायत दर्ज कराएं, अन्यथा भविष्य में बीमा बंद करवाना ही बेहतर होगा।
संयुक्त कृषक संगठन ने साफ किया है कि किसी भी किसान संगठन के भरोसे सामूहिक रूप से फसल बीमा नहीं मिलेगा। सेटेलाइट सर्वे की प्रक्रिया में किसानों को खुद आगे आना होगा। संगठन ने चेतावनी दी है कि जब तक बरसात का समय बाकी है और जिला-गांव को सूखा घोषित नहीं किया जाता, तब तक केवल सर्वे ही संभव है, राहत राशि राज्य सरकार की इच्छा पर निर्भर है।
किसानों से अपील
संगठन ने कहा कि वह जमीनी स्तर से लेकर न्यायालय तक किसानों की लड़ाई लड़ेगा, लेकिन इसमें समय लगेगा। उन्होंने किसानों से अपील की कि इस जानकारी को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं, ताकि कोई भी किसान अपने अधिकार से वंचित न रहे।
