भोपाल | MP पुलिस प्रशासन ने समाज और अभिभावकों से एक विशेष अपील की है। अपील में कहा गया है कि अगर स्कूल में शिक्षक बच्चों को डांटते या हल्की-फुल्की सजा देते हैं, तो माता-पिता इसे बुरा न मानें। उनका मानना है कि यह डांट-पटकार बच्चों को सही रास्ते पर लाने के लिए होती है। अगर बच्चे बचपन से अनुशासन में नहीं रहेंगे, तो आगे चलकर उनका व्यवहार समाज और कानून, दोनों के लिए परेशानी बन सकता है।
पुलिस का कहना है कि अनुशासन केवल मीठी बातों से नहीं आता। बच्चों को कभी-कभी डांट और सजा की भी जरूरत होती है। आज हालात यह हैं कि बच्चे न तो स्कूल में डरते हैं, न ही घर पर किसी का लिहाज रखते हैं। नतीजा यह है कि ऐसे बच्चे बड़े होकर अपराध की राह पकड़ लेते हैं। कई बार यही बच्चे सड़क पर गुंडागर्दी करते हैं और दूसरों की जान तक ले लेते हैं। बाद में वही पुलिस के हत्थे चढ़ते हैं और अदालत से कड़ी सजा पाते हैं।
शिक्षक की भूमिका
पुलिस प्रशासन ने अपील में लिखा है कि आज गुरु का सम्मान कम हो गया है। पहले बच्चों को गुरु का डर और आदर होता था। यही डर उन्हें पढ़ाई और अच्छे संस्कारों की ओर ले जाता था। लेकिन अब माहौल बदल गया है। कई माता-पिता यह सोचते हैं कि अगर उनका बच्चा पढ़े-लिखे या न पढ़े, लेकिन उसे शिक्षक डांटे या सजा न दें। यह सोच गलत है।
आज बच्चों की आदतें तेजी से बदल रही हैं। स्कूलों में पांचवीं कक्षा से ही बच्चे अजीब हेयर स्टाइल, फटे जींस और अनुशासनहीन चाल-ढाल अपनाने लगते हैं। शिक्षक जब टोकते हैं तो बच्चे पलटकर जवाब देते हैं, “आने दो सर को।” कई बार बच्चे कहते हैं कि यह हेयर स्टाइल पापा ने करवाया है। ऐसी स्थितियों में शिक्षक चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते।
माता-पिता की जिम्मेदारी
पुलिस ने माता-पिता को भी आगाह किया है। उनका कहना है कि बच्चों की बिगड़ती आदतों के पीछे सबसे बड़ा कारण घर का लाड़-प्यार और मोबाइल-टीवी जैसी चीजें हैं। दोस्ती, इंटरनेट और मीडिया 60 प्रतिशत बच्चों की बर्बादी का कारण हैं, जबकि बाकी 40 प्रतिशत जिम्मेदारी माता-पिता की होती है।
- घर के कामों में मदद नहीं करते
- स्कूल का सामान संभालकर नहीं रखते
- बाजार जाने से कतराते हैं और सबकुछ ऑनलाइन मंगाना चाहते हैं
- रात देर तक जगते हैं और सुबह देर से उठते हैं
- डांटने पर चीजें फेंक देते हैं
- पैसे मिलते ही दोस्तों पर खर्च कर देते हैं
- नाबालिग होने के बावजूद बाइक चलाते हैं और हादसों का शिकार हो जाते हैं
पुलिस का कहना है कि यह सब आदतें बच्चों को आलसी, उद्दंड और गैर-जिम्मेदार बना रही हैं। लड़कियां भी घरेलू कामों में रुचि नहीं लेतीं। कई बार 20 साल की उम्र में भी उन्हें खाना बनाने जैसे बुनियादी काम नहीं आते।
अनुशासन से ही बनेगा भविष्य
पुलिस प्रशासन ने साफ कहा है कि बिना डर के शिक्षा संभव नहीं है और बिना अनुशासन के शिक्षा का कोई परिणाम नहीं। आज के माता-पिता चाहते हैं कि बच्चे को हमेशा दोस्ताना माहौल में समझाया जाए। लेकिन क्या समाज भी हमेशा गलती करने वालों को माफ करता है? अगर कोई अपराध करता है तो उसे अदालत में सजा मिलती है। इसी तरह अगर बच्चे गलती करें तो शिक्षक की सजा भी उन्हें सुधारने के लिए जरूरी है।
पुलिस ने उदाहरण देकर कहा कि शिक्षक की डांट से कोई खर्च नहीं होता, लेकिन अगर वही बच्चा बड़ा होकर अपराध करता है तो पुलिस की पिटाई और अदालत की कार्यवाही में घर-परिवार को पैसे और प्रतिष्ठा दोनों गंवाने पड़ते हैं।
अपील का निष्कर्ष
पुलिस प्रशासन ने कहा कि 90 प्रतिशत शिक्षक बच्चों का भला ही चाहते हैं। अगर किसी एक-दो शिक्षक से गलती हो जाए, तो इसका मतलब यह नहीं कि सभी शिक्षकों को दोषी ठहराया जाए। पहले के जमाने में माता-पिता बच्चों को गुरु के महत्व को समझाते थे, लेकिन अब कई माता-पिता ही शिक्षकों को कटघरे में खड़ा कर देते हैं।
अगर हम आज अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देंगे, तो आने वाली पीढ़ी बर्बाद हो जाएगी। शिक्षक रहम कर सकते हैं, लेकिन पुलिस नहीं। इसलिए बच्चों की डांट और सजा को बुरा न मानें। यह बच्चों को अपराध की राह से बचाने का सबसे आसान तरीका है।
