दाद यानी फंगल इंफेक्शन को लोग अक्सर मामूली समझते हैं, लेकिन AIIMS भोपाल की एक साल लंबी स्टडी ने बताया है कि यह बीमारी व्यक्ति की जीवनशैली को 150% तक बिगाड़ सकती है। खुजली, जलन और फैलने की समस्या के कारण मरीज को न सिर्फ शारीरिक परेशानी होती है, बल्कि आत्मविश्वास और सामाजिक जीवन पर भी इसका गहरा असर पड़ता है।
एम्स भोपाल के आयुष विभाग की होम्योपैथी विंग ने 103 मरीजों पर रिसर्च की। रिपोर्ट में दावा है कि एलोपैथी जहां संक्रमण को सिर्फ दबाती है, वहीं होम्योपैथी शरीर से इस इंफेक्शन को जड़ से मिटाने की क्षमता रखती है। रिसर्च टीम ने मरीजों को तीन महीने इलाज दिया और फिर नौ महीने बिना दवा के लगातार मॉनिटरिंग की। इसमें देखा गया कि मरीज लंबे समय तक ठीक रहे और दोबारा संक्रमण लौटने की संभावना बेहद कम थी।
3 चरणों में हुआ पूरा इलाज
शोध को तीन चरणों में बांटा गया पहला चरण विस्तृत जांच का था, दूसरा दवा देने का और तीसरा लंबे फॉलो-अप का। मरीजों को उनकी हालत के अनुसार दवाएं दी गईं। रिसर्च टीम के अनुसार, दाद अक्सर कमजोर इम्युनिटी और पुरानी आदतों के कारण बार-बार लौट आता है, लेकिन इस बार इलाज के बाद मरीजों में स्थायी सुधार देखने को मिला।
OPD में लगातार बढ़ रहे मरीज
होम्योपैथी विशेषज्ञ डॉ. आशीष कुमार दीक्षित के साथ डॉ. दानिश जावेद, डॉ. अमित श्रीवास्तव, डॉ. रेणु बाला और डॉ. निभा गिरी की टीम ने इलाज की पूरी प्रक्रिया को संभाला। आयुष विभाग में सोमवार से शनिवार तक चलने वाली OPD में दाद के मरीज लगातार बढ़ते दिखे। जांच में सामने आया कि एक बड़ा हिस्सा ऐसे लोगों का है जो लंबे समय से उसी समस्या से परेशान थे और बार-बार दवा लेने के बावजूद पूरी तरह ठीक नहीं हो पा रहे थे।
एम्स टीम का कहना है कि इस रिसर्च का उद्देश्य सिर्फ संक्रमण खत्म करना नहीं था, बल्कि मरीज की रोजमर्रा की जिंदगी को सामान्य करना भी था। कई मरीजों ने बताया कि परेशानियां कम होने के बाद उनकी नींद, कामकाज और सामाजिक गतिविधियों में स्पष्ट सुधार दिखा।
नई गाइडलाइन की तैयारी
स्टडी पूरी होने के बाद आयुष विभाग इस मॉडल को बड़े स्तर पर लागू करने की तैयारी कर रहा है। टीम का मानना है कि अगर इस तरीके को देशभर में अपनाया जाए तो दाद जैसी आम लेकिन जिद्दी बीमारी से राहत पाने में बड़ी मदद मिल सकती है।
