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मऊगंज में गौसंवर्धन के नाम पर खुला भ्रष्टाचार का पिटारा! कागज़ों में चल रहीं गौशालाएं, करोड़ों की बंदरबांट से जनता हैरान

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Published On: 7 November 2025

मऊगंज जिले में गौसंवर्धन और गोसेवा की सरकारी योजनाएं अब गौसेवा नहीं बल्कि घोटाले का प्रतीक बनती जा रही हैं। सरकार की मंशा चाहे गायों की सेवा और संरक्षण की रही हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। जिले में संचालित 74 गौशालाएं भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुकी हैं, जहां हर महीने करोड़ों का खेल चल रहा है और यह सब “कागज़ों की दुनिया” में बखूबी चल रहा है।

हर महीने 1.81 करोड़ का खेल

जानकारी के मुताबिक, मऊगंज जिले में लगभग 15 हजार गायों के नाम पर सरकार हर महीने करीब 1 करोड़ 81 लाख 20 हजार रुपए जारी कर रही है। नियम के अनुसार, प्रति गोवंश प्रतिदिन ₹40 का खर्चा निर्धारित है। लेकिन हकीकत यह है कि 30 से 40 फीसदी गौशालाएं केवल रिकॉर्ड पर मौजूद हैं। स्थानीय सूत्रों का कहना है कि नोडल अधिकारी और पंचायत स्तर के कुछ जिम्मेदार लोग मिलकर फर्जी आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर भेजते हैं ताकि बजट की रकम सीधी जेब में जा सके।

कलेक्टर की चुप्पी पर सवाल

गौशालाओं की निगरानी की जिम्मेदारी जिला कलेक्टर को सौंपी गई है। लेकिन अब तक किसी भी गौशाला का भौतिक निरीक्षण नहीं किया गया। सवाल उठता है कि क्या कलेक्टर को इन गड़बड़ियों की जानकारी नहीं है, या फिर सब कुछ उनकी जानकारी में ही हो रहा है? कुछ दिन पहले कलेक्टर ने आदेश जारी किया था कि “सड़क पर अगर कोई गोवंश दिखे तो पंचायत सचिव और रोजगार सहायक पर कार्रवाई होगी।” लेकिन ज़मीनी हालात उलट हैं। सड़कों पर बेसहारा गायों का झुंड घूम रहा है, किसान फसलों की रखवाली में रातें काट रहे हैं और आए दिन दुर्घटनाएं हो रही हैं।

38 लाख में अधूरी गौशालाएं

एक गौशाला बनाने के लिए 38 लाख रुपए का बजट तय किया गया है। हर गौशाला में कम से कम 150 गोवंश रखने की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अलावा, हर महीने करीब 1.80 लाख रुपए चारे और रखरखाव के लिए जारी किए जाते हैं। मगर जमीनी तस्वीर कुछ और है। कई गौशालाओं में भूसा, पानी, या गोवंश का नामोनिशान नहीं, जबकि कागज़ों में 300 से 400 गायें दर्ज हैं। कई गौशालाओं के भूसा गृह अधूरे या जर्जर हालत में हैं।

सूत्र बताते हैं कि जिले की कुछ गौशालाओं में तो एक महीने में चार-चार लाख रुपए का बजट जारी कर दिया गया, जबकि वहां एक भी गाय मौजूद नहीं थी। स्थानीय लोगों ने इसकी शिकायत क्षेत्रीय विधायक और प्रशासन से की है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। गांव के लोगों का सवाल साफ है, “जब सड़क पर गायें भूखी मर रही हैं, तो फिर सरकारी बजट आखिर कहां जा रहा है?”

बन गई भ्रष्टाचार की गंगोत्री?

सरकार की मुख्यमंत्री गौसंवर्धन योजना का उद्देश्य गायों को सुरक्षित आश्रय देना था, लेकिन मऊगंज में यह योजना भ्रष्टाचार की गंगोत्री बन गई है। पैसे बह रहे हैं, लेकिन गायें मर रही हैं। ग्रामीणों की मांग है कि जिला प्रशासन तुरंत सभी 74 गौशालाओं की जांच करे, फर्जी आंकड़ों का ऑडिट कराया जाए और दोषियों पर कार्रवाई हो। वरना मऊगंज का यह मामला सिर्फ गायों का नहीं, बल्कि ईमानदारी और जवाबदेही का सवाल बन जाएगा।

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