मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने गुरुवार को प्रेस नोट जारी कर आदिवासी समाज की अस्मिता और विशिष्ट पहचान पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आदिवासी भारत की सबसे पुरानी और गौरवशाली सभ्यता का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनकी परंपराएं और आस्था आज भी जीवंत और प्रासंगिक हैं। संविधान ने भी अनुच्छेद 244, 275 और 5वीं अनुसूची के तहत उन्हें विशेष अधिकार प्रदान किए हैं।
सिंघार ने सुप्रीम कोर्ट के कई अहम फैसलों का हवाला दिया, जिनमें Labishwar Manjhi v. Pran Manjhi (2000), Dr. Surajmani Stella Kujur v. Durga Charan Hansdah (2001) और Orissa Mining Corporation v. Ministry of Environment & Forest (2013) शामिल हैं। उन्होंने कहा कि ये फैसले आदिवासी परंपराओं और धार्मिक पहचान की विशेषता को स्थापित करते हैं।
आदिवासी प्रकृति
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि आदिवासी समाज की आस्था प्रकृति, जंगल और धरती से गहराई से जुड़ी है। यही उनकी असली ताकत और विशिष्ट पहचान है। उन्होंने साफ कहा, “मैं आदिवासी अस्मिता, गौरव और स्वतंत्र धार्मिक पहचान का सम्मान करता हूँ। हमारा लक्ष्य उनकी संस्कृति को संरक्षित करना और आने वाली पीढ़ियों को उस पर गर्व दिलाना है।”
BJP की सोच पर सीधा वार
सिंघार ने बीजेपी और आरएसएस पर आरोप लगाया कि वे आदिवासियों को “वनवासी हिंदू” कहकर उनकी अलग पहचान मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना था कि यह रणनीति केवल आदिवासियों की राजनीतिक स्वायत्तता और आरक्षण अधिकारों को कमजोर करने के लिए है। उन्होंने कहा कि बीजेपी के लिए आदिवासी सिर्फ वोट बैंक हैं, जबकि असल में वे इस देश के मूल निवासी और सबसे प्राचीन परंपरा के वाहक हैं।
आदिवासी समाज भारत की सबसे प्राचीन और गौरवशाली सभ्यताओं का प्रतिनिधि है। हमारी मौलिक परंपराएँ, संस्कृति और पूजा-पद्धति हजारों वर्षों से चली आ रही हैं और आज भी उतनी ही जीवित और प्रासंगिक हैं। संविधान ने भी इस विशिष्ट पहचान को मान्यता दी है।
आदिवासी परंपराएं, रीति-नीति, अधिकारों…
— Umang Singhar (@UmangSinghar) September 4, 2025
संविधान ने दी है पहचान
सिंघार ने याद दिलाया कि संविधान में आदिवासियों को अलग पहचान और अधिकार दिए गए हैं। इसके बावजूद बीजेपी लगातार इस अस्मिता को नकारती रही है। उन्होंने कहा कि मेरा ध्येय आदिवासी अस्मिता की रक्षा, गौरव की स्थापना और संस्कृति का संरक्षण है। बीजेपी इस दिशा में कभी ईमानदार नहीं रही।
