देवास | MP के देवास कलेक्टर कार्यालय में मंगलवार को जनसुनवाई के दौरान एक महिला द्वारा कलेक्टर कार्यालय की छत पर चढ़ने की घटना से हड़कंप मच गया। महिला हाटपिपल्या की रहने वाली आशा बाई है, जो अपने पति धर्मेंद्र बागरी के साथ वर्षों पुराने जमीन विवाद को लेकर आवेदन देने आई थी। उसका आरोप है कि उसकी पुश्तैनी जमीन फर्जी रजिस्ट्री के जरिए किसी और को सौंप दी गई है, और प्रशासनिक स्तर पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस तत्काल मौके पर पहुंची और महिला को बातचीत कर नीचे उतारा गया। अधिकारियों ने आश्वासन दिया कि मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाएगी और दस्तावेजों की स्थिति स्पष्ट होने के बाद उचित कार्रवाई की जाएगी।
प्रशासन का पक्ष
कलेक्टर ऋतुराज सिंह ने इस मामले पर कहा कि यह विवादित भूमि का मामला काफी पुराना और कानूनी व तकनीकी रूप से जटिल है। महिला को 1960 में जमीन का पट्टा जारी किया गया था, लेकिन उसी भूमि पर कई दशक पहले आईटीआई का निर्माण हो चुका है। ऐसे में मामला सीधे तौर पर निराकरण योग्य नहीं है। कलेक्टर ने कहा कि संबंधित दस्तावेजों और बंदोबस्त रिकॉर्ड की समीक्षा की जा रही है।
एसडीएम बिहारी सिंह ने कहा कि महिला द्वारा जताया गया विरोध संवेदनशील जरूर है, लेकिन उसकी जांच तथ्यों के आधार पर की जा रही है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि कुछ तत्व इसे राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि प्रशासन पीड़ित की हर बात ध्यान से सुन रहा है।
हेल्पलाइन से भी निराशा
आशा बाई के पति धर्मेंद्र बागरी का कहना है कि उनकी दादी नबी बाई के नाम की 16 बीघा ज़मीन पर फर्जी दस्तावेजों के ज़रिए कब्जा कर लिया गया है। वे 2024 से लगातार कलेक्टर कार्यालय, तहसील और सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं हुई है। उनका दावा है कि जमीन को अब शासकीय भूमि बताया जा रहा है, जबकि उनके पास पुराने दस्तावेज हैं।
धर्मेंद्र ने कहा कि जब वे रोजगार के लिए गुजरात गए थे, उसी दौरान जमीन से संबंधित दस्तावेजों में छेड़छाड़ की गई और उनका कब्जा खत्म कर दिया गया। उन्होंने प्रशासन से अपील की है कि वे इस विवाद की निष्पक्ष जांच कर उचित कार्रवाई करें।
ग्रामीणों ने जताई नाराजगी
इसी दिन निवाड़ी जिले के ग्राम बिरोरा से आए कुछ किसान दंडवत करते हुए कलेक्ट्रेट पहुंचे और अपनी जमीन के डूब जाने की शिकायत की। उन्होंने बताया कि अमृत सरोवर योजना के तहत बनाए गए तालाब में उनकी 15 एकड़ जमीन समा गई है। ग्रामीणों का कहना है कि वे पहले भी अधिकारियों को आवेदन दे चुके हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
