ग्वालियर हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए साफ कर दिया है कि अनुकंपा नियुक्ति के मामलों में सिर्फ इसी आधार पर किसी को बाहर नहीं किया जा सकता कि उसके पास टीईटी जैसी योग्यता नहीं है। कोर्ट ने अधिकारियों को आदेश दिया है कि मामले पर दोबारा बैठकर विचार किया जाए और यह देखा जाए कि नीति में उपलब्ध अन्य पदों पर नियुक्ति दी जा सकती है या नहीं। मामला रश्मि शर्मा का है, जिनके पति संविदा शाला शिक्षक ग्रेड-III थे। साल 2012 में उनके पति की मौत हो गई थी। परिवार की जिम्मेदारी अचानक उन पर आ गई, तो उन्होंने उसी साल दिसंबर में अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया। लेकिन विभाग ने पांच साल बाद, 2017 में, उनका आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उनके पास टीईटी की योग्यता नहीं है।
इसके बाद मामला कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने विभाग को फिर से सुनवाई करने को कहा। 2019 में दोबारा आवेदन देखा गया, लेकिन अफसरों ने फिर उसी पुराने तर्क पर आवेदन ठुकरा दिया।
दोबारा करें विचार
हाईकोर्ट ने इस रवैये पर आपत्ति जताते हुए कहा कि विभागीय देरी के लिए आवेदक को सजा नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने साफ कहा कि अनुकंपा नियुक्ति सिर्फ शिक्षक पद तक सीमित नहीं है, बल्कि नीति में कई अन्य पद भी शामिल हैं जहां योग्यता के हिसाब से किसी आश्रित को नौकरी दी जा सकती है। ऐसे में सीधे-सीधे यह बोल देना कि टीईटी नहीं है, इसलिए नियुक्ति नहीं मिलेगी ठीक नहीं है।
कानूनी प्रक्रिया
कोर्ट ने टिप्पणी की कि मामला वर्षों तक लटका रहा, इसका जिम्मेदार विभागीय प्रक्रियाओं की सुस्ती और कानूनी प्रक्रिया है, न कि याचिकाकर्ता। इसलिए इस आधार पर आवेदन को रिजेक्ट करना कानूनन सही नहीं माना जा सकता। रश्मि शर्मा की ओर से अधिवक्ता डीपी सिंह ने पैरवी की और कोर्ट से गुहार लगाई कि परिवार 12 साल से न्याय की उम्मीद में भटक रहा है। कोर्ट के आदेश के बाद अब विभाग को मजबूरन मामले पर दोबारा विचार करना होगा और यह देखना पड़ेगा कि किस पद पर नियुक्ति दी जा सकती है।
