ग्वालियर हाईकोर्ट ने एक ऐसा अनूठा आदेश जारी किया है, जिसने न्यायिक दृष्टिकोण के साथ मानवीय संवेदनाओं को भी सामने रखा है। न्यायमूर्ति आनंद पाठक और न्यायमूर्ति पुष्पेंद्र यादव की खंडपीठ ने एक वकील को निर्देश दिया है कि वे ग्वालियर के माधव अंधाश्रम में एक घंटे तक सामाजिक सेवा करें और वहां के वंचित बच्चों के बीच समय बिताएं। साथ ही, उन्हें बच्चों के लिए 10 हजार रुपये मूल्य की खाद्य सामग्री और नाश्ता भी उपलब्ध कराना होगा।
विकास निगम से जुड़ा
मामला सुशील वर्मा बनाम मध्य प्रदेश औद्योगिक विकास निगम से जुड़ा है। यह याचिका पदोन्नति से संबंधित थी और पिछले दस वर्षों से अदालत में लंबित थी। अपीलकर्ता की ओर से पेश हो रहे वकील प्रशांत शर्मा की लगातार अनुपस्थिति के कारण मूल याचिका खारिज कर दी गई थी। इस पर जब मामला हाईकोर्ट की खंडपीठ के सामने आया तो न्यायाधीशों ने साफ कहा कि किसी पक्षकार को अपने वकील की लापरवाही का खामियाजा नहीं भुगतना चाहिए।
प्रक्रिया का सम्मान
न्यायालय ने माना कि अदालत की प्रक्रिया का सम्मान होना चाहिए और इसकी अवहेलना को हल्के में नहीं लिया जा सकता। हालांकि, कोर्ट ने वकील को दंडित करने के बजाय समाजहित से जुड़ी सेवा करने का रास्ता चुना। आदेश में कहा गया कि वकील प्रशांत शर्मा माधव अंधाश्रम में जाकर वहां के बच्चों के साथ समय बिताएं, ताकि वे समाज के उस वर्ग की पीड़ा को समझ सकें, जो सहारे और संवेदना का मोहताज है।
सरोकार का उदाहरण
कोर्ट का यह फैसला कानूनी गलती को सुधारने के साथ-साथ सामाजिक सरोकार का एक उदाहरण भी बन गया है। आमतौर पर पेशेवर लापरवाही के मामलों में वकीलों पर जुर्माना लगाया जाता है, लेकिन ग्वालियर हाईकोर्ट ने इस बार मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए उन्हें जरूरतमंद बच्चों की सेवा का दायित्व सौंपा। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह आदेश न केवल पेशेवर जिम्मेदारी का एहसास दिलाता है, बल्कि वकीलों और अन्य पेशेवरों को भी यह सीख देता है कि समाज के प्रति संवेदनशील बने रहना कितना आवश्यक है।