ग्वालियर हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में साफ कर दिया कि किसी भी छात्र को बीमारी या दिव्यांगता के कारण शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। मामला लक्ष्मीबाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन (एलएनआईपीई) का है, जहां बीपीएड कोर्स के लिए सभी टेस्ट पास कर चुके छात्र को सिर्फ टाइप-1 डायबिटीज होने की वजह से प्रवेश देने से रोक दिया गया था।
छात्र प्रज्ञांश ने लिखित परीक्षा, फिजिकल टेस्ट और स्किल टेस्ट समेत हर स्टेज पास कर ली थी। 8 अगस्त 2025 को उसे आवंटन पत्र भी जारी हो चुका था। लेकिन मेडिकल टेस्ट में टाइप-1 डायबिटीज सामने आने के बाद संस्थान ने एडमिशन पर रोक लगा दी। छात्र ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और बताया कि वह जिला व राज्य स्तर की बैडमिंटन प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुका है और कोर्स की हर शारीरिक आवश्यकता को पूरा करने में सक्षम है।
मेडिकल स्थिति नहीं
हाईकोर्ट ने छात्र की दलील स्वीकार करते हुए कहा कि डायबिटीज कोई ऐसी मेडिकल स्थिति नहीं है, जो किसी व्यक्ति को फिजिकल एजुकेशन कोर्स के लिए अयोग्य बना दे। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की, “यह मामला नौकरी का नहीं, बल्कि शिक्षा तक पहुंच के अधिकार का है। संस्थान की जिम्मेदारी है कि वह छात्रों को आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराए।” कोर्ट ने संस्थान की उस दलील को भी खारिज कर दिया कि छात्र की बीमारी अतिरिक्त बोझ बन सकती है। अदालत ने स्पष्ट कहा कि साधारण भारतीय भोजन दाल, चावल, सब्जी, रोटी, दही डायबिटिक मरीजों के लिए उपयुक्त है। छात्र अपने मिनी-फ्रिज में इंसुलिन भी रख सकता है और इससे संस्थान पर किसी भी तरह का अतिरिक्त दबाव नहीं पड़ेगा। न्यायालय ने एलएनआईपीई को यह एडमिशन तुरंत बहाल करने के निर्देश दिए।
ऑटोइम्यून बीमारी
टाइप-1 डायबिटीज एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें शरीर इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को खुद ही नष्ट कर देता है। यह अक्सर बचपन या किशोरावस्था में सामने आती है और मरीज को जीवनभर इंसुलिन की जरूरत रहती है। ब्लड शुगर बढ़ने पर मरीजों को बार-बार प्यास लगना, पेशाब आना और थकान जैसे लक्षण दिखते हैं। इसी के साथ कोर्ट ने एक बड़ा सवाल भी उठा दिया क्या मेडिकल स्थितियां किसी की शिक्षा का रास्ता रोक सकती हैं? अदालत का स्पष्ट जवाब था नहीं।
भारत में पहले ही 7.7 करोड़ लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं और 15% से ज्यादा लोग प्री-डायबिटिक हैं। ऐसे में हाईकोर्ट का यह फैसला लाखों छात्रों के लिए एक मिसाल बन सकता है, जो किसी बीमारी के बावजूद अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं।
