इंदौर की गुरदीप वासु जन्म से दृष्टिहीन, मूक और बधिर हैं। पांच साल से उनका सपना था कि वह सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से मिलें। दिवाली से पहले उनका यह सपना मुंबई में सच हो गया। गुरदीप ने बिग बी को छूकर महसूस किया कि उनके स्पर्श रूपी आशीर्वाद का इंतजार खत्म हो गया। सिर्फ गुरदीप नहीं, छत्तीसगढ़ के गोकरण पाटिल भी दिव्यांग हैं। वे जन्म से मूक-बधिर हैं और उनके दोनों हाथ नहीं हैं। उन्होंने पैरों से अमिताभ का पोट्रेट बनाकर उन्हें गिफ्ट किया। इस अनोखी मुलाकात ने अमिताभ बच्चन को भावविभोर कर दिया।
मुलाकात की खास बातें
दोनों बहु-दिव्यांगों से अमिताभ ने करीब 25 मिनट बातचीत की। उनके परिजन और साइन लैंग्वेज टीचर ज्ञानेंद्र- मोनिका पुरोहित भी साथ थे। अमिताभ ने जाना कि दोनों की जिंदगी में जन्म से ही कितनी चुनौतियां रही हैं। पढ़ाई, सरकारी नौकरी की तैयारी और रोजमर्रा की जिंदगी सब कुछ इनके लिए आसान नहीं था।
गुरदीप की कहानी
गुरदीप का जन्म इंदौर में हुआ। उन्होंने पहले मुंबई के हेलन केलर स्कूल में शिक्षा ली, फिर इंदौर की आनंद सर्विस सोसाइटी में आठवीं कक्षा में प्रवेश लिया। उनके शिक्षक पुरोहित दंपती ने टेक्सटाइल साइनिंग स्पर्श लिपि का भारतीय संस्करण तैयार किया। गुरदीप की शिक्षा में उनकी मां मनजीत कौर और बहन हरप्रीत कौर की अहम भूमिका रही। उनका जीवन फिल्म ब्लैक से प्रेरित रहा। गुरदीप ने ब्रेल लिपि में अमिताभ को पत्र भेजा और मिलने की इच्छा जताई।
गोकरण का संघर्ष और कला
गोकरण पैरों से साइन लैंग्वेज सीखते हैं और ड्राइंग भी बनाते हैं। उन्होंने 12वीं की पढ़ाई पैरों से की और फर्स्ट डिवीजन में पास हुए। उनका सपना सरकारी नौकरी पाना है। दिवाली से पहले उन्होंने अमिताभ को उनके बर्थ डे से पहले पोट्रेट गिफ्ट किया।
अमिताभ की प्रतिक्रिया
अमिताभ बच्चन दोनों से मिलकर भावुक हो गए। उन्होंने दोनों के प्रयासों की सराहना की और आशीर्वाद दिया। गुरदीप ने महसूस किया कि बिग बी का स्पर्श उन्हें सीधे उनकी हथेली पर मिल रहा है। गोकरण ने पैरों से अमिताभ से बातचीत की और पेंटिंग गिफ्ट की, जिसे अमिताभ ने खूब पसंद किया। पुरोहित दंपती ने बताया कि दिव्यांग बच्चों के लिए खुशियां लाना सबसे बड़ा तोहफा है। गुरदीप और गोकरण की यह मुलाकात उनके लिए अनमोल रही। मुलाकात के बाद दोनों ने अपने फोटो और पेंटिंग देशभर के दोस्तों और परिवार को भेजी।
मुंबई, दिल्ली और अन्य शहरों से दोनों को बधाई संदेश मिले और उनकी सराहना हुई। गुरदीप और गोकरण के लिए यह मुलाकात सिर्फ सपनों की पूर्ति नहीं, बल्कि जीवन की कठिनाइयों पर विजय का प्रतीक भी बन गई।
