जबलपुर आर्थिक अन्वेषण ब्यूरो (EOW) ने राज्य के पावर ट्रांसमिशन सेक्टर में हुए बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया है। देवबिल्ड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड पर आरोप है कि कंपनी के संचालकों ने फर्जी परफॉर्मेंस सर्टिफिकेट जमा कर 226 करोड़ रुपए के टेंडर हासिल कर लिए। शुरुआती शिकायत को गंभीरता से लेते हुए EOW ने जांच शुरू की, जिसमें यह खुलासा सामने आया कि कंपनी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज पूरी तरह कूटरचित थे।
EOW की जांच में सामने आया कि कंपनी के प्रबंध संचालक कैलाश शुक्ला और उनके परिवारजनों ने मिलकर एक कथित परफॉर्मेंस सर्टिफिकेट तैयार करवाया था, जिस पर नोएडा स्थित इनॉक्सविंड इंफ्रास्ट्रक्चर सर्विस लिमिटेड का नाम लिखा हुआ था। यह दस्तावेज यह दिखाने के लिए बनाया गया था कि देवबिल्ड इंडिया ने पहले भी इसी तरह के प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक पूरे किए हैं। इसी फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर कंपनी ने हाईटेंशन लाइन और 220 केवी सब स्टेशन के निर्माण से जुड़े बड़े टेंडर हासिल कर लिए।
कॉर्पोरेट ऑफिस ने किया साफ इंकार
जांच टीम जब नोएडा स्थित इनॉक्सविंड इंफ्रास्ट्रक्चर सर्विस लिमिटेड के कॉर्पोरेट ऑफिस पहुंची तो कंपनी के अधिकारियों ने स्पष्ट कहा कि उन्होंने ऐसा कोई प्रमाणपत्र जारी नहीं किया है। यह पुष्टि होते ही यह साफ हो गया कि देवबिल्ड इंडिया द्वारा प्रस्तुत किया गया सर्टिफिकेट पूरी तरह फर्जी था और टेंडर प्रक्रिया को प्रभावित करने के उद्देश्य से इसका इस्तेमाल किया गया था।
EOW के अनुसार फर्जी सर्टिफिकेट का इस्तेमाल 2 मार्च 2017 को तीन अलग-अलग टेंडरों टीआर-36/16, टीआर-13/20 और टीआर-35/20 में किया गया था। ये सभी टेंडर उच्च क्षमता की ट्रांसमिशन लाइन और सब स्टेशन निर्माण से जुड़े थे। इन प्रोजेक्ट्स की कुल कीमत 226 करोड़ रुपए से अधिक थी, जो अब घोटाले के रूप में सामने आया है।
गंभीर धाराओं में FIR
जांच में आरोप प्रमाणित होने के बाद EOW ने कंपनी के प्रबंध संचालक कैलाश शुक्ला, डायरेक्टर सीमा शुक्ला और भानू शुक्ला के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और षड्यंत्र की धाराओं 420, 468, 471, 465, 34 और 120-बी के तहत FIR दर्ज कर ली है। मामले का अपराध क्रमांक 156/2025 दर्ज किया गया है।
EOW अब इस बात की भी जांच कर रही है कि फर्जी दस्तावेज तैयार कराने की साजिश में और कौन-कौन शामिल था और टेंडर प्राप्त करने के बाद वित्तीय लेन-देन का प्रवाह कैसे हुआ। घोटाला उजागर होने के बाद ऊर्जा और ट्रांसमिशन विभागों में हड़कंप मच गया है, क्योंकि यह मामला न सिर्फ आर्थिक गड़बड़ी बल्कि संवैधानिक प्रक्रियाओं से खिलवाड़ का संकेत देता है।
