जबलपुर के मनमोहन नगर में बने सरकारी अस्पताल में लापरवाही का ऐसा उदाहरण सामने आया, जिसने दो सगे भाइयों की जान ले ली। अस्पताल परिसर में 10 साल से खुला पड़ा सेप्टिक टैंक आखिरकार मौत का कारण बन गया। हादसे के वक्त मुख्यमंत्री मोहन यादव शहर में ही मौजूद थे, लेकिन इससे पहले कि कोई कार्रवाई होती, दो घरों के चिराग बुझ गए। यह अस्पताल करीब एक दशक पहले तैयार हुआ था, लेकिन सेप्टिक टैंक का ढक्कन कभी नहीं लगाया गया।
स्थानीय लोगों ने कई बार शिकायतें कीं। कभी अस्पताल प्रबंधन से, कभी नगर निगम से लेकिन हर बार सिर्फ भरोसे का झुनझुना पकड़ा दिया गया। लोग कहते हैं कि यहां रोज मरीज और बच्चे आते हैं, फिर भी किसी ने उस खुले गड्ढे को ढकने की ज़हमत नहीं उठाई। शनिवार को दो मासूम भाई खेलते-खेलते उसी में गिर गए और बाहर नहीं निकल पाए।
रात में पहुंचे मंत्री
हादसे की खबर मिलते ही देर रात लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह और विधायक अभिलाष पांडे मौके पर पहुंचे। सफाई ठेकेदार गौरव पिल्लई को तुरंत सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
सीएमएचओ डॉ. संजय मिश्रा ने बताया कि ठेकेदार की लापरवाही सामने आई है। उनका कहना था कि पहले भी टैंक के ढक्कन चोरी होने की शिकायतें मिली थीं। आसपास के बच्चे क्रिकेट खेलते थे, और गेंद टैंक के पास चली जाती थी, जिसके कारण वे वहां जाते रहते थे।
हटाए गए डॉक्टर
हादसे के बाद चिकित्सा अधिकारी डॉ. अंशुल शुक्ला को हटा दिया गया और उन्हें सीएमएचओ कार्यालय भेज दिया गया है। लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि क्या सिर्फ ठेकेदार और डॉक्टर ही दोषी हैं? लोग पूछ रहे हैं कि इतने सालों तक टैंक खुला कैसे पड़ा रहा? क्या जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के अफसरों की कोई जिम्मेदारी नहीं?
कांग्रेस का प्रदर्शन
रविवार को कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने अस्पताल परिसर में प्रदर्शन किया। नगर अध्यक्ष सौरभ शर्मा ने कहा, “सरकार ने चार-चार लाख देकर मामला निपटाने की कोशिश की है। ठेकेदार को हटाना बस दिखावा है। अगर यह किसी भाजपा नेता के घर का मामला होता, तो अब तक कलेक्टर और सीएमएचओ दोनों बदल दिए जाते।” उन्होंने आरोप लगाया कि अस्पताल की रोगी कल्याण समिति में भाजपा समर्थक सदस्य हैं, जो इस लापरवाही पर पर्दा डाल रहे हैं।
