देश की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदियों में से एक भोपाल गैस कांड को हुए 33 साल से ज़्यादा समय गुजर चुका है, लेकिन पीड़ितों को अब तक न्याय नहीं मिला। इस मामले में बुधवार को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए भोपाल की ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया है कि गैस त्रासदी से जुड़े आपराधिक मामलों का जल्द से जल्द निपटारा किया जाए।
हाईकोर्ट ने कही कड़ी बात
हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की बेंच ने सुनवाई के दौरान साफ कहा कि “हम 40 साल तक केस को लंबित नहीं रख सकते।” अदालत ने आदेश दिया कि वॉरेन एंडरसन समेत सभी आरोपियों पर जल्द फैसला सुनाया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि केस से जुड़ी हर कार्यवाही की मासिक प्रोग्रेस रिपोर्ट रजिस्ट्रार जनरल को भेजी जाए, जिसे बाद में मुख्य न्यायाधीश के सामने रखा जाएगा।
याचिका पर हुई सुनवाई
यह आदेश भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया। यह समिति कई स्वैच्छिक संगठनों का संघ है जो गैस त्रासदी पीड़ितों के लिए काम करती है। समिति का कहना था कि क्रिमिनल केस 91/1992 पिछले 33 सालों से लटका हुआ है। इतना ही नहीं, वर्ष 2010 से जिला जज की अदालत में आपराधिक पुनरीक्षण की अपील भी लंबित है।
सुनवाई में सरकारी वकील ने यह आपत्ति जताई कि याचिकाकर्ता न तो गवाह है और न ही पक्षकार, इसलिए उसकी याचिका सुनने योग्य नहीं है। हालांकि अदालत ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि “कार्रवाई इतने लंबे समय से लंबित है, इसलिए इसे खत्म करना ज़रूरी है।”
फिर भी चार्जशीट नहीं
याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि एक आरोपी अक्टूबर 2023 से लगातार कोर्ट में उपस्थित हो रहा है। इसके बावजूद न तो चार्जशीट दाखिल हुई और न ही ट्रायल शुरू हुआ। इस पर अदालत ने पूछा कि अगर आरोपी हाज़िर हो रहा है तो धारा 82 (फरार घोषित करना) का क्या अर्थ रह जाता है? इस पर याचिकाकर्ता ने जवाब दिया कि केवल आरोपी की उपस्थिति से ट्रायल अपने आप शुरू नहीं होता, इसके लिए अदालत को विशेष आदेश देना होता है।
समिति ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने खुले कोर्ट में आदेश पारित करने में असमर्थता जताई है। इससे साफ है कि केस को आगे बढ़ाने में गंभीर लापरवाही हो रही है।
हाईकोर्ट ने दिया भरोसा
हाईकोर्ट ने भरोसा दिलाया कि अब हर महीने केस की रिपोर्ट देखी जाएगी और मामले का निस्तारण प्राथमिकता पर किया जाएगा। अदालत ने यह भी कहा कि इतना पुराना केस अब और लंबा खिंचना पीड़ितों के साथ नाइंसाफी होगी।
पीड़ितों का सवाल
गैस त्रासदी से प्रभावित लोग अब भी यही सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर कब उन्हें न्याय मिलेगा? यूनियन कार्बाइड के जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो पाई? और क्यों इतने सालों बाद भी मामले की सुनवाई कछुआ गति से आगे बढ़ रही है?
भोपाल गैस कांड सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि इंसाफ़ की लंबी जंग का नाम बन चुका है। हाईकोर्ट के ताज़ा निर्देशों से पीड़ितों को उम्मीद जगी है कि शायद अब न्याय की राह थोड़ी आसान होगी और जिम्मेदारों को सज़ा मिलेगी। लेकिन असल सवाल यह है कि क्या वाकई 33 साल बाद भी अदालतें इस मामले को तेज़ी से निपटा पाएंगी?