MP हाईकोर्ट में एक ऐसा मामला सामने आया, जिसने पूरे देश में रहने वाले प्रवासी समुदायों के अधिकारों पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया। मुद्दा ये है कि क्या सिर्फ दूसरे राज्य में जाकर बस जाने से किसी व्यक्ति की जाति बदल जाती है? इस सवाल पर चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने केंद्र और राज्य सरकार से दो हफ्ते में स्पष्ट जवाब देने को कहा है। मामला असल में गोंड जनजाति के एक प्रमाण पत्र को रद्द किए जाने से जुड़ा है। याचिकाकर्ता विश्वनाथ शाह का कहना है कि उनका जन्म 1966 में जबलपुर में हुआ था। उनके माता-पिता मूल रूप से बिहार के सिवान जिले के रहने वाले थे, लेकिन रोज़गार के लिए कई साल पहले जबलपुर आकर बस गए थे और वही पर मेहनत-मजदूरी कर परिवार चलाया। 1981 में जबलपुर कलेक्टर ने विश्वनाथ को उनके माता-पिता की जाति के आधार पर गोंड जनजाति का प्रमाण पत्र भी जारी किया था।
5 अगस्त 2025 को राज्य स्तरीय उच्च शक्ति समिति ने यह कहते हुए प्रमाण पत्र रद्द कर दिया कि उनके पिता का जन्म बिहार में हुआ था, इसलिए मध्यप्रदेश में जारी जनजाति प्रमाण पत्र वैध नहीं माना जा सकता। विश्वनाथ का कहना है कि वे जन्म से लेकर अब तक जबलपुर में ही रहे, पढ़ाई भी यहां की और पूरा जीवन यहीं गुजरा, फिर अचानक उनकी जाति पर सवाल कैसे उठ गया?
आरक्षण का लाभ
उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार की उन अधिसूचनाओं को भी कोर्ट में चुनौती दी है, जिनके अनुसार किसी भी SC-ST व्यक्ति को अगर वह दूसरे राज्य में बस जाए, तो वहां आरक्षण का लाभ नहीं मिलता। याचिका का कहना है कि यह नियम संविधान के अनुच्छेद 14, 16, 19(1)(ई) और 21 के खिलाफ है, जो हर नागरिक को समानता, आजीविका और पूरे भारत में कहीं भी रहने का अधिकार देता है।
मांगा ठोस जवाब
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने भी साफ टिप्पणी की कि जब संविधान किसी भी नागरिक को देश में कहीं भी जाकर बसने की आजादी देता है, तो निवास बदलने पर जाति या आरक्षण का अधिकार क्यों छीना जा रहा है? कोर्ट ने इस पर सरकार से ठोस जवाब मांगा है और कहा है कि अगली सुनवाई में इस मुद्दे पर अंतरिम आदेश पर भी विचार किया जाएगा। यह केस सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि उन हजारों लोगों का मामला है जो काम-धंधे या मजबूरी में एक राज्य से दूसरे राज्य में जाकर बस जाते हैं। हाईकोर्ट का फैसला आने वाले समय में प्रवासी जनजातीय समुदायों के लिए बड़ा प्रभाव डाल सकता है।
