छिंदवाड़ा में 3 सितंबर को आयोजित कर्मा पूर्जा कार्यक्रम में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार का बयान कि गर्व से कहो, हम आदिवासी हैं, हिन्दू नहीं देशभर में चर्चा का विषय बन गया है। इस बयान पर बीजेपी के आदिवासी नेता हमलावर हैं, जबकि सिंघार अपने बयान पर कायम हैं। ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट एमपी के कमिश्नर और मुख्यमंत्री के अपर सचिव लक्ष्मण सिंह मरकाम ने इस मुद्दे पर विस्तार से बात की। मरकाम खुद भी महाकौशल क्षेत्र के गौंड आदिवासी समाज से हैं। उनका कहना है कि सिंघार के बयान से आदिवासी परंपराओं की समझ की कमी सामने आती है।
लगभग 21% जनसंख्या आदिवासी
मरकाम ने बताया कि मध्यप्रदेश में लगभग 21% जनसंख्या आदिवासी है। गोंड समाज बड़ादेव की पूजा करता है, भील समाज महादेव की, और कोल समाज शिव बोंगा की। सभी समाजों में नवरात्रि और गरबा जैसे उत्सव मनाए जाते हैं। यानी आदिवासी समाज शिव, शक्ति और प्रकृति के पूजक हैं। इसलिए यह कहना कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं, सही नहीं है।
मरकाम ने स्पष्ट किया कि हिन्दू कोड बिल लागू न होना और हिंदू न होना अलग बातें हैं। आदिवासी समाज में विवाह, विधवा विवाह, बहुविवाह जैसी अलग व्यवस्थाएं रही हैं, इसलिए कोड बिल लागू नहीं होता। यह किसी तरह की अलग पहचान नहीं बल्कि समाज की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि संविधान में आदिवासी को अलग परिभाषा दी गई है, जैसे अनुच्छेद 366(25)। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देकर यह दावा करना कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं, तथ्यात्मक रूप से गलत है।
धार्मिक रीति-रिवाज
मरकाम ने गौंड और भील समाज की परंपराओं का उदाहरण देते हुए कहा कि आदिवासी समाज टोटमिक व्यवस्था में बंधा है। हर गोत्र का अपना पेड़, पक्षी और तत्व है। पत्थर, पेड़, गाता, सूर्य और अन्य प्राकृतिक तत्वों की पूजा होती है। मरकाम ने कहा कि इस तरह के बयान समाज में भ्रम फैलाने वाले हैं। आदिवासियों को उनके परंपरागत विश्वासों से दूर कर अलग धर्म कोड देने का प्रयास किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है। इसके पीछे अल्टीरियर मोटिव है, जो आदिवासी समाज को विभाजित करने का काम करता है।
आदिवासी नेता का समर्थन
पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते ने भी कहा कि उनका इस बयान से कोई संबंध नहीं है। आदिवासी समाज सदियों से प्रकृति के पुजारी और अपनी संस्कृति के संरक्षक रहे हैं। उन्होंने साफ किया कि देशभर के आदिवासी समाज में यह परंपरा आज भी जीवित है।