जबलपुर | मध्य प्रदेश (MP) के सरकारी कर्मचारियों को जबलपुर हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। न्यायालय ने हाल ही में लागू किए गए नए पदोन्नति नियमों के क्रियान्वयन पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि अगली सुनवाई तक पदोन्नति में आरक्षण लागू नहीं किया जाएगा।
15 जुलाई को होगी सुनवाई
प्रमोशन में आरक्षण के मामले पर स्पाक्स (सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संस्था) की ओर से मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। न्यायालय ने इस संबंध में कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी किया है और जवाब मांगा है, इस मामले की अगली सुनवाई 15 जुलाई को होगी। हाई कोर्ट ने कहा है, कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका लंबित रहते हुए राज्य सरकार प्रमोशन में आरक्षण का लाभ नहीं दे सकती है।
9 सालों से रुका हुआ हैं मामला
मध्य प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति में आरक्षण का मुद्दा बीते 9 वर्षों से रुका हुआ है। इस लंबे कानूनी और प्रशासनिक विवाद ने हजारों अधिकारियों और कर्मचारियों के करियर पर गहरा असर डाला है। इन 9 सालों में कई कर्मचारी बिना प्रमोशन के ही सेवानिवृत्त हो गए। बड़ी संख्या में कर्मचारी आज भी पदोन्नति की आस में दिन गिन रहे हैं। प्रशासनिक मशीनरी में कार्य दक्षता और मनोबल दोनों प्रभावित हुए हैं।
कई बार सरकार ने नियमों में बदलाव कर स्थिति सुधारने की कोशिश की, लेकिन हर बार मामला अदालतों में चुनौती के कारण अटक गया। अब जबकि हाईकोर्ट ने नए नियमों पर रोक लगाते हुए 15 जुलाई को अगली सुनवाई तय की है, कर्मचारियों की निगाहें एक बार फिर न्यायिक फैसले पर टिकी हैं।
प्रमोशन में आरक्षण
प्रमोशन में आरक्षण एक प्रक्रिया है, जिसके तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के अधिकारियों और कर्मचारियों को लाभ दिया जाएगा। राज्य सरकार ने इसके लिए प्रारूप भी तैयार कर लिया है और इसके कैबिनेट से मंजूरी भी मिल गई थी। प्रमोशन के लिए दो तरह की लिस्ट तैयार किया जाना था, इसमें क्लास-वन ऑफिसर्स के प्रमोशन का आधार मैरिट-कम-सीनियरिटी को बनाया जाना था। वहीं, क्लास-2 के नीचे के सभी अधिकारियों की लिस्ट सीनयरिटी-कम-मैरिट के आधार पर तैयार की जानी थी।