MP में प्रमोशन में आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है। बुधवार को जबलपुर हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई, जिसमें अजाक्स (अनुसूचित जाति-जनजाति कर्मचारी संघ) ने सुनवाई पर रोक लगाने की मांग की थी। लेकिन कोर्ट ने साफ कह दिया कि सुनवाई रुकेगी नहीं, आगे बढ़ेगी। अजाक्स का कहना था कि यह मामला पहले से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसलिए हाईकोर्ट को इस पर अभी विचार नहीं करना चाहिए। मगर राज्य सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि मामले को और लटकाना ठीक नहीं, क्योंकि हजारों कर्मचारियों का प्रमोशन इसी पर टिका है।
जल्द फैसला जरूरी
राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि नई प्रमोशन पॉलिसी पर फैसला जल्द होना चाहिए ताकि योग्य कर्मचारियों को प्रमोशन दिया जा सके। सरकार की दलील थी कि यह मामला वर्षों से अदालत में फंसा है, जिससे प्रशासनिक कामकाज पर असर पड़ रहा है। कोर्ट ने सरकार की बात मानते हुए अजाक्स की मांग ठुकरा दी और कहा कि फाइनल सुनवाई जारी रखी जाएगी। अब अगली सुनवाई 13 नवंबर को होगी।
याचिकाकर्ताओं का तर्क
याचिकाकर्ताओं की तरफ से अधिवक्ता अमोल श्रीवास्तव ने जोरदार दलीलें रखीं। उनका कहना था कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों एम. नागराज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और जरनैल सिंह केस की शर्तों को नजरअंदाज किया है। उनके मुताबिक, सरकार ने बिना ठोस आंकड़ों के ही “अपर्याप्त प्रतिनिधित्व” मान लिया और आरक्षण का नियम लागू कर दिया, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 16(1) का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन ही होगा रास्ता
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि प्रमोशन में आरक्षण लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन को ही आधार बनाया जाएगा। हालांकि, वक्त की कमी के कारण बुधवार को सुनवाई अधूरी रही, अब इसे 13 नवंबर तक टाल दिया गया है। फिलहाल नई पॉलिसी पर रोक बरकरार है। राज्य सरकार ने मौखिक रूप से अदालत को भरोसा दिया है कि जब तक फैसला नहीं आता, नई प्रमोशन पॉलिसी लागू नहीं की जाएगी। इस बीच, कर्मचारी संगठनों और सामान्य वर्ग के कर्मचारियों के बीच तनाव का माहौल है। एक तरफ आरक्षण समर्थक इसे “समान अवसर” का मामला बता रहे हैं, वहीं विरोधी इसे “योग्यता की अनदेखी” कह रहे हैं।
अब नजरें अगली सुनवाई
क्या 13 नवंबर को इस लंबी कानूनी जंग का कोई नतीजा निकलेगा या मामला फिर खिंच जाएगा, यह वक्त ही बताएगा।
