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नालों के दूषित पानी से सब्जी उगाने पर सख्त MP हाईकोर्ट, NGT समिति की रिपोर्ट ने खोली खामियां

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Published On: 5 December 2025

जबलपुर शहर में नालों के गंदे और रसायनयुक्त पानी से सब्जियां उगाने की शिकायतों पर MP हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया। जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार और नगर निगम से सीधा सवाल किया कि आखिर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) की समिति द्वारा दी गई सिफारिशों पर अब तक क्या कदम उठाए गए हैं। चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा कि यह मामला सिर्फ पर्यावरण का नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य से जुड़ा गंभीर मुद्दा है। कोर्ट ने सरकार और नगर निगम दोनों को निर्देश दिया है कि अगली तारीख से पहले विस्तृत हलफ़नामा पेश किया जाए। इसके साथ ही अगली सुनवाई 18 दिसंबर के लिए निर्धारित की गई है।

NGT समिति की रिपोर्ट ने खोली खामियां

सुनवाई के दौरान कोर्ट मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और पुष्पेंद्र शाह ने NGT की संयुक्त जांच समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया। रिपोर्ट में बताया गया है कि शहर में हर दिन करीब 174 MLD दूषित पानी सीधे नालों में बह रहा है। वहीं, नगर निगम के पास मौजूद 13 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट मिलकर 58 MLD पानी ही ट्रीट कर पाते हैं, जबकि इन प्लांट्स की कुल क्षमता 154.38 MLD है। करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद स्थिति में कोई ठोस सुधार नहीं हुआ है।

कोर्ट में यह जानकारी भी सामने आई कि अमृत 2.0 योजना के तहत जबलपुर नगर निगम को 1202.38 करोड़ रुपये की स्वीकृति मिली है, पर इसके बावजूद सीवेज प्रबंधन में अपेक्षित सुधार नजर नहीं आ रहा। कोर्ट ने कहा कि जनता के स्वास्थ्य और पर्यावरण सुरक्षा को लेकर ऐसी लापरवाही स्वीकार्य नहीं है।

खुले नालों को कवर करने की अनुशंसा

कोर्ट मित्रों ने सुझाव दिया कि शहर में खुले नालों को कवर किया जाए और ट्रीटमेंट के बाद ही पानी को शहर से बाहर नदियों में छोड़ा जाए। NGT समिति की रिपोर्ट में भी इन्हीं उपायों को अनिवार्य रूप से जल्द लागू करने की सिफारिश की गई है। अदालत ने इन सिफारिशों को गंभीरता से लेते हुए सरकार से जवाब मांगने का आदेश दिया। जबलपुर के कछपुरा, विजय नगर, कचनारी, गोहलपुर, बेलखाड़ू और बघौड़ा जैसे क्षेत्रों में ओमती और मोती नालों के दूषित पानी से सब्जियां उगाने की शिकायतें लंबे समय से मिलती रही हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक इन नालों में मौजूद रसायन और विषैले तत्व सीधे उपभोक्ताओं की सेहत पर असर डाल रहे हैं। कोर्ट ने मीडिया रिपोर्टों का संज्ञान लेते हुए इसे स्वतः जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया और संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी किया है।

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