उज्जैन | मध्यप्रदेश के जबलपुर और उज्जैन में प्रस्तावित जू सह रेस्क्यू सेंटर की शुरुआत अब सुप्रीम कोर्ट की अनुमति मिलने के बाद ही हो सकेगी। वजह यह है कि वन विभाग इन दोनों केंद्रों को वन क्षेत्र में स्थापित करना चाहता है, जबकि देश की सर्वोच्च अदालत ने ऐसे इलाकों में किसी भी प्रकार के पक्के निर्माण पर रोक लगा रखी है।
वन क्षेत्र में निर्माण पर सख्ती
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, किसी भी वन क्षेत्र में स्थायी निर्माण कार्य करने के लिए कोर्ट से विशेष अनुमति लेनी होती है। चूंकि जू और रेस्क्यू सेंटर में कई स्थायी ढांचे, बाड़ेबंदी और अन्य सुविधाएं बनानी होंगी, इसलिए इसे ‘वानिकी गतिविधि’ के दायरे में लाने और अनुमति हासिल करने की प्रक्रिया जरूरी है।
अगर ये केंद्र राजस्व भूमि पर बनते, तो अनुमति की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास के करीब सुविधा विकसित करने के उद्देश्य से विभाग ने वन भूमि को ही प्राथमिकता दी है।
मुख्यमंत्री की घोषणा
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने लगभग छह महीने पहले इन दोनों शहरों में जू और रेस्क्यू सेंटर की स्थापना की घोषणा की थी। इसके बाद वन विभाग की टीम ने गुजरात के जामनगर में अंबानी ग्रुप द्वारा संचालित जू व रेस्क्यू सेंटर का दौरा किया। मुख्यमंत्री स्वयं भी इस केंद्र का निरीक्षण कर चुके हैं।
उज्जैन में DPR तैयार
वन विभाग ने उज्जैन परियोजना के लिए डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) तैयार कर ली है। इस प्रस्ताव को केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण को भेजा गया, जहां से सैद्धांतिक मंजूरी मिल चुकी है। अब अगला कदम सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दाखिल करना है, जिसमें यह दलील दी जाएगी कि जू सह रेस्क्यू सेंटर वन्यजीव संरक्षण के हित में है और इसे वानिकी गतिविधि के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
जबलपुर परियोजना के लिए DPR तैयार करने का काम अभी बाकी है। उज्जैन की तरह, वहां भी सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद कोर्ट में अनुमति के लिए याचिका दायर की जाएगी।
क्यों जरूरी है रेस्क्यू सेंटर?
वन विभाग के अधिकारियों का मानना है कि राज्य में घायल, बीमार या अनाथ हुए जंगली जानवरों की देखभाल के लिए ऐसे केंद्र बेहद जरूरी हैं। फिलहाल कई मामलों में वन्यजीवों को अस्थायी व्यवस्थाओं में रखना पड़ता है, जिससे उनकी देखभाल में दिक्कतें आती हैं। आधुनिक सुविधाओं से लैस रेस्क्यू सेंटर से न केवल बेहतर इलाज और पुनर्वास संभव होगा, बल्कि यह पर्यावरण शिक्षा और वन्यजीव पर्यटन को भी बढ़ावा देगा।
सुप्रीम कोर्ट की रोक का असर
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने वर्षों पहले वन क्षेत्रों में पक्के निर्माण पर रोक लगाई थी, ताकि प्राकृतिक आवास में मानवीय हस्तक्षेप कम किया जा सके। हालांकि, संरक्षण संबंधी परियोजनाओं के लिए, अदालत से विशेष अनुमति ली जा सकती है। उज्जैन के लिए यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और जबलपुर का नंबर इसके बाद आएगा।