9 जुलाई को भारत बंद, देशभर में हड़ताल; 25 करोड़ मजदूरों की हुंकार

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Published On: 8 July 2025

नई दिल्ली | 9 जुलाई बुधवार को भारत एक बड़े सामाजिक और आर्थिक आंदोलन का साक्षी बनने जा रहा है। देशभर की 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने सरकार की श्रम नीतियों और निजीकरण के खिलाफ देशव्यापी हड़ताल की घोषणा की है। वहीं, बिहार में विपक्षी महागठबंधन ने भी इसी दिन चक्का जाम का आह्वान किया है। माना जा रहा है कि इस आंदोलन में 25 करोड़ से अधिक कर्मचारी, ग्रामीण मजदूर, औद्योगिक श्रमिक और यूनियन सदस्य हिस्सा ले सकते हैं।

इसका व्यापक असर बैंकिंग और बीमा सेवाएं, डाक और संचार सेवाएं, कोयला खनन और ऊर्जा उत्पादन, परिवहन (बस, ट्रक, रेल), निर्माण और फैक्ट्री सेक्टर पर पड़ेगा, इस हड़ताल से कई करोड़ रुपये का नुकसान संभावित है। दिनभर की रुकावट से बैंकिंग लेनदेन, औद्योगिक उत्पादन और सप्लाई चेन पर सीधा असर पड़ सकता है।

चक्का जाम की भी घोषणा

9 जुलाई को भारत एक बड़े सामाजिक और आर्थिक आंदोलन का गवाह बनने जा रहा है, इसी दिन बिहार में विपक्षी महागठबंधन ने भी सरकार की नीतियों के विरोध में चक्का जाम की घोषणा की है। इस संयुक्त विरोध में 25 करोड़ से अधिक कर्मचारी, ग्रामीण मजदूर, औद्योगिक श्रमिक और यूनियन सदस्य भाग ले सकते हैं।

देशभर में 10 यूनियनों की हड़ताल

यह देशव्यापी हड़ताल 10 प्रमुख ट्रेड यूनियनों और उनके सहयोगी संगठनों द्वारा आयोजित की गई है। इसका उद्देश्य केंद्र सरकार की श्रम विरोधी, किसान विरोधी और जन विरोधी नीतियों के खिलाफ विरोध जताना है।

कर्मचारियों के भारत बंद में यूनियनों में एआईटीयूसी (AITUC), एचएमएस (HMS), सीआईटीयू (CITU), आईएनटीयूसी (INTUC), आईएनयूटीयूसी (INUTUC), टीयूसीसी (TUCC), सेवा (SEWA), एआईसीसीटीयू (AICCTU), एलपीएफ (LPF), यूटीयूसी (UTUC) इस आंदोलन के समर्थन में शामिल है, जबकि आरएसएस समर्थित भारतीय मजदूर संघ (BMS) इस आंदोलन से अलग है।

इस हड़ताल को संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि श्रमिक संगठनों के साझा मंच का भी समर्थन प्राप्त है, जिससे यह आंदोलन केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि ग्रामीण भारत में भी इसका व्यापक प्रभाव देखने को मिल सकता है।

हड़ताल की मुख्य मांगें

  • काम के घंटे बढ़ाना और मजदूरी सुरक्षा कम करना
  • निजीकरण और संविदा प्रणाली को बढ़ावा
  • सरकारी नौकरियों में नई भर्तियों की मांग
  • बेहतर वेतन और पेंशन की व्यवस्था
  • बेरोजगारी की समस्या को गंभीरता से लेना
  • श्रम सम्मेलन की नियमितता सुनिश्चित करना

इन क्षेत्रों पर पड़ेगा प्रभाव

  • बैंकों में कामकाज ठप रह सकता है, चेक क्लियरिंग, नकदी जमा/निकासी, ग्राहक सेवा आदि प्रभावित होंगी। बीमा दावों की प्रक्रिया में देरी संभव है।
  • पार्सल, पत्र, रजिस्ट्री और अन्य डाक सेवाएं बाधित हो सकती हैं, ग्रामीण डाक सेवाओं पर खास असर पड़ने की आशंका है।
  • कोयला खदानों में उत्पादन रुक सकता है। इससे ऊर्जा उत्पादन और आपूर्ति पर भी असर पड़ सकता है।
  • रोडवेज बसें बंद हो सकती हैं। आम जनता को आवागमन में दिक्कत हो सकती है, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में।
  • राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय सड़क परियोजनाएं धीमी पड़ सकती हैं। निजी ठेकेदारों के कामकाज में बाधा आएगी।
  • औद्योगिक बेल्ट में उत्पादन ठप हो सकता है। टेक्सटाइल, ऑटो, सीमेंट, स्टील जैसी इंडस्ट्रीज़ प्रभावित होंगी। सरकारी कार्यालयों, नगरपालिका सेवाओं और शिक्षा संस्थानों में भी उपस्थिति प्रभावित हो सकती है।

बिहार में चक्का जाम

देशभर में ट्रेड यूनियनों की हड़ताल के बीच बिहार में विरोध की राजनीति भी गरमा गई है। यहां विपक्षी महागठबंधन जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस, वामपंथी दल और अन्य क्षेत्रीय पार्टियां शामिल हैं , विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान के जरिए वोटरों की छंटनी की जा रही है, जिसे उन्होंने ‘वोटबंदी’ करार दिया है।

इस मुद्दे को लेकर सड़कों पर उतरने की तैयारी की जा रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी खुद पटना में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करेंगे। राजद नेता तेजस्वी यादव और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने SIR प्रक्रिया को पक्षपाती और लोकतंत्र के खिलाफ बताया है। पप्पू यादव जैसे प्रभावशाली जननेताओं ने भी इस बंद को खुला समर्थन दिया है।

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