बिहार चुनाव में जदयू ने अपने पत्ते पूरी तरह खोल दिए हैं। पार्टी ने अपने कोटे की सभी 101 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। इस बार की लिस्ट देखकर साफ है कि नीतीश कुमार ने जातीय समीकरण को साधने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। सबसे ज्यादा हिस्सेदारी पिछड़े वर्ग को दी गई है।
कुल उम्मीदवारों में से 37 सीटें पिछड़े वर्ग के नेताओं के खाते में गई हैं। वहीं, 22-22 उम्मीदवार अतिपिछड़ा वर्ग और सामान्य श्रेणी से उतारे गए हैं। अनुसूचित जाति के 15, अल्पसंख्यक समाज के चार और एक उम्मीदवार अनुसूचित जनजाति से हैं। इस बार पार्टी ने महिलाओं को भी तरजीह दी है। कुल 13 महिला उम्मीदवार मैदान में होंगी।
लवकुश समीकरण पर फोकस
जदयू की रणनीति में इस बार भी लवकुश कार्ड (कुशवाहा और कुर्मी जाति) को मजबूत पकड़ने की कोशिश दिखी। पार्टी ने कुशवाहा समाज के 13 और कुर्मी जाति के 12 उम्मीदवारों को टिकट दिया है। यानी सिर्फ इन दो जातियों से ही कुल 25 उम्मीदवार उतार दिए गए हैं। नीतीश कुमार की यह चाल उनके पुराने सामाजिक समीकरण को फिर से मजबूत करने की दिशा में मानी जा रही है।
धानुक और यादव को भी तवज्जो
यादव और धानुक जाति के आठ-आठ उम्मीदवार इस लिस्ट में शामिल हैं। निषाद समाज से तीन लोगों को मौका मिला है। वहीं गंगौता समाज के दो, और कामत, चंद्रवंशी, तेली व कलवार समाज के प्रत्याशियों की संख्या भी दो-दो है। इसके अलावा हलवाई, कानू, अग्रहरि, सुढ़ी और गोस्वामी समाज से एक-एक उम्मीदवार को टिकट मिला है।
अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों में संतुलन
जदयू ने अनुसूचित जाति की 15 सीटों में भी समाज के अलग-अलग तबकों का ध्यान रखा है। मुसहर और मांझी समुदाय से पांच-पांच उम्मीदवार हैं। रविदास समाज को भी पांच सीटें दी गई हैं। इसके अलावा पासी समाज के दो लोगों को टिकट मिला है। वहीं पासवान, सरदार-बांसफोर, खरवार और धोबी समाज से एक-एक प्रत्याशी को मौका दिया गया है।
महिलाओं को मिला सम्मान
इस बार की लिस्ट में 13 महिलाएं भी शामिल हैं, जो अलग-अलग वर्गों और जातियों से आती हैं। पार्टी ने महिलाओं को सिर्फ प्रतीक के तौर पर नहीं, बल्कि मज़बूत उम्मीदवार के रूप में उतारा है।
साफ संकेत
जदयू की यह लिस्ट बताती है कि नीतीश कुमार एक बार फिर अपने पुराने फॉर्मूले पर भरोसा कर रहे हैं, “सबको साथ लेकर चलो।” उन्होंने हर तबके को टिकट देकर संदेश दिया है कि पार्टी सिर्फ कुछ खास जातियों की नहीं, बल्कि पूरे समाज की राजनीति करती है।
चुनाव के मैदान में उतरने से पहले जदयू का यह संतुलित दांव साफ करता है कि नीतीश कुमार इस बार भी जातीय गणित और सामाजिक प्रतिनिधित्व पर ही अपनी नैया पार लगाने की कोशिश करेंगे। अब देखना यह होगा कि जनता का गणित इस सामाजिक संतुलन पर क्या फैसला सुनाता है।
