लाइफस्टाइल | सावन का महीना भगवान शिव की भक्ति और सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दौरान 16 शृंगार करना शुभ और सौभाग्यदायक माना जाता है। लेकिन यदि किसी कारणवश महिलाएं पूरा 16 शृंगार न कर सकें, तो पूजा-पाठ या व्रत के दौरान ये 5 गोल्ड और सिल्वर की पारंपरिक ज्वैलरी अवश्य पहननी चाहिए, क्योंकि इन्हें मंगल, सौभाग्य और शिव-पार्वती की कृपा का प्रतीक माना जाता है। अगर महिलाये इतनी ज्वैलरी पहनकर पूजा पाठ करेंगी, तो – पूजा अच्छे भाव से संपन होगी।
सावन का महीना हिन्दू धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, खासकर सुहागिन महिलाओं के लिए। इस पवित्र महीने में महिलाएं व्रत, पूजा और श्रृंगार के माध्यम से भगवान शिव को प्रसन्न करने का प्रयास करती हैं। मान्यता है कि इस महीने में पारंपरिक श्रृंगार और आभूषण पहनना सौभाग्य और सुख-समृद्धि का प्रतीक होता है।
सावन का महीना सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास होता है। इस महीने में भगवान शिव के साथ ही मां पार्वती की भी पूजा का विधान है। तभी तो सावन सोमवार के साथ ही सुहागिन स्त्रिया मंगला गौरी का व्रत करती हैं। अगर सावन महीने में आप व्रत और पूजा-पाठ में रहती हैं, तो सोने-चांदी की इन ज्वैलरी को जरूर पहनें।
सोने की ईयररिंग का महत्व
हिंदू मान्यतानुसार बच्चों में कर्ण छेदन एक संस्कार है। जिसे पूरा किया जाता है। कान छेदने के बाद इन छेद को कभी भी खाली नहीं रखना चाहिए। खासतौर पर पूजा-पाठ के वक्त मान्यता है कि इन छिद्र में सोने की ईयररिंग्स जरूर होनी चाहिए।
पायल का महत्व
सोलह शृंगार में पायल का विशेष स्थान होता है। यह केवल महिलाओं की सुंदरता को नहीं निखारती, बल्कि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सौभाग्य की प्रतीक भी मानी जाती है। खासकर सावन के पावन महीने में जब महिलाएं पूजा-पाठ और व्रतों में लीन रहती हैं, तब पायल पहनना शुभ माना जाता है। पायल में लगे घुंघरू केवल मन को लुभाते नहीं, बल्कि उनके मधुर स्वर से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यही कारण है कि सावन के दौरान महिलाएं नित्य पूजा और घरेलू कार्यों के समय भी पायल धारण करती हैं।
बिछिया का महत्व
चांदी की बिछिया केवल एक आभूषण नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और विज्ञान दोनों से जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। इसे पैर की उंगलियों में पहनने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी छिपा है। माना जाता है कि चांदी विद्युत प्रवाह को संतुलित करती है और धरती से आने वाली ऊर्जा को शरीर में पहुंचाती है। बिछिया पहनने से महिलाओं के मासिक धर्म (पीरियड्स) नियमित रहते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से भी बिछिया को माता लक्ष्मी का प्रिय आभूषण माना जाता है। इसलिए सुहागिन महिलाएं इसे पहनकर देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने का प्रयास करती हैं और अपने वैवाहिक जीवन की मंगलकामना करती हैं।
मांगटीका का महत्व
मांगटीका केवल एक सौंदर्य आभूषण नहीं, बल्कि यह सौभाग्य और सुहाग का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सुहागिन स्त्रियों को पूजा-पाठ या विशेष अवसरों पर मांगटीका पहनना अत्यंत शुभ माना जाता है। मांगटीका को सिंदूर का रक्षक माना गया है। इसे माथे के बीच में इस तरह पहना जाता है कि यह सिंदूर को ढंकता है और उसे बुरी नजर से बचाता है।
भारतीय विवाह परंपरा में दुल्हन को मांगटीका पहनाना इसलिए आवश्यक होता है क्योंकि यह उसे संपूर्ण सुहागिन बनाता है। यह पारंपरिक श्रृंगार का अभिन्न अंग है। सावन जैसे शुभ महीनों में जब माता पार्वती की पूजा की जाती है, उस समय मांगटीका पहनना सौभाग्यवर्धक माना गया है। यह स्त्री के अखंड सौभाग्य की कामना का प्रतीक होता है।
नाक में नथ पहनने का महत्व
हिंदू धर्म में महिलाओं के नाक छिदवाने की परंपरा केवल फैशन से जुड़ी नहीं है, बल्कि इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों कारण हैं। नाक में नथ पहनना स्त्रियों के सौंदर्य और सुहाग का प्रतीक माना जाता है। विशेषकर माता पार्वती को नथ प्रिय मानी जाती हैं, इसलिए पूजा-पाठ, व्रत या विशेष धार्मिक अवसरों पर सुहागिन महिलाएं इसे पहनना शुभ मानती हैं। इसीलिए धार्मिक अनुष्ठानों, सावन व्रत, मंगला गौरी पूजा या किसी शुभ अवसर पर नाक में नथ जरूर पहननी चाहिए, क्योंकि यह न केवल परंपरा है बल्कि सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक भी है।
