उज्जैन | मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकाल मंदिर के गर्भगृह की गरिमा एक बार फिर सियासी ताकत के आगे फीकी पड़ती दिखाई दी। मामला है इंदौर-03 से भाजपा विधायक गोलू शुक्ला का, जो अपने बेटे रुद्राक्ष के साथ गर्भगृह में बिना अनुमति घुसते देखे गए। इस पूरे घटनाक्रम ने न सिर्फ मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि धार्मिक मर्यादाओं के खुले उल्लंघन को भी उजागर किया है।
दी धमकी
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, जब मंदिर कर्मचारी ने नियमों के तहत उन्हें गर्भगृह में जाने से रोका, तो विधायक पुत्र रुद्राक्ष ने तीखे तेवर दिखाए और धमकी तक दे डाली। यह दृश्य वहां मौजूद आम श्रद्धालुओं के लिए चौंकाने वाला था। मंदिर के जिन नियमों का पालन हर श्रद्धालु करता है, वही नियम कुछ खास लोग तोड़ने में जरा भी संकोच नहीं कर रहे।
विशेष अनुमति
शुरुआत में जब मीडिया ने सवाल उठाए, तो मंदिर प्रशासन की ओर से सफाई दी गई कि विधायक के पास “विशेष अनुमति” थी। लेकिन थोड़ी ही देर बाद, मंदिर के उप प्रशासक का बयान सामने आया कि “गर्भगृह में प्रवेश के लिए उस दिन किसी को इजाजत नहीं दी गई थी।” यह विरोधाभास सिर्फ भ्रम नहीं, बल्कि सच्चाई छुपाने की कोशिश जैसा प्रतीत हो रहा है।
अब कलेक्टर के आदेश पर तीन सदस्यीय जांच समिति बनाई गई है, जिसे सात दिन के भीतर रिपोर्ट सौंपनी है। सवाल यह है कि क्या यह रिपोर्ट सिर्फ औपचारिकता होगी या इस बार सत्ता से जुड़े लोगों की जवाबदेही भी तय होगी?
महाकाल मंदिर गर्भगृह में इंदौर-03 से भाजपा विधायक गोलू शुक्ला अपने बेटे रुद्राक्ष के साथ बिना अनुमति, जबरन घुस गए थे!
मंदिर कर्मचारी ने,
रोकने की कोशिश की,
तो “रुद्राक्ष” ने धमकी दी!पहले मंदिर प्रशासन ने कहा था कि विधायक के पास अनुमति थी! फिर मंदिर के उप प्रशासक ने कहा,… pic.twitter.com/8iuXXJwZU4
— Jitendra (Jitu) Patwari (@jitupatwari) July 23, 2025
प्रशासन सख्त
यह घटना ऐसे समय में सामने आई है जब सावन के पवित्र महीने में कांवड़ यात्रा चल रही है और मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर प्रशासन लगातार सख्ती के दावे कर रहा था। लेकिन हकीकत यह सामने आई कि नियम आम लोगों के लिए हैं, विशेष लोगों के लिए नहीं।इस पूरे मामले पर अब जनता की निगाहें सिर्फ प्रशासन की रिपोर्ट पर नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया पर भी टिकी हैं। क्या धार्मिक व्यवस्था को ताक पर रखने वालों के नाम जांच में दर्ज होंगे? क्या गर्भगृह की पवित्रता को ताक पर रखने की सजा तय होगी?
लोकतंत्र में आस्था और व्यवस्था दोनों साथ चलें, इसकी उम्मीद अब दुर्लभ होती जा रही है। यह उम्मीद तब और टूटती है, जब खुद सत्ता के प्रतिनिधि ‘अदृश्य विशेषाधिकारों’ का प्रयोग करके धार्मिक स्थलों में प्रवेश कर जाते हैं। उनके परिजन मंदिर कर्मचारियों को धमकाते हैं।
