उज्जैन | सावन के पावन महीने में उज्जैन एक विशेष धार्मिक दृश्य का साक्षी बन रहा है। चिंतामन रोड स्थित प्राचीन जगदीश मंदिर में इन दिनों सवा पांच लाख पार्थिव शिवलिंगों का निर्माण किया जा रहा है। मिट्टी से बनाए जा रहे इन शिवलिंगों को तैयार करने में कोई मूर्तिकार नहीं, बल्कि सैकड़ों महिलाएं, युवतियां और बच्चे जुटे हुए हैं। मंदिर परिसर भक्ति, संकल्प और श्रद्धा का जीवंत प्रतीक बन गया है।
अब तक तीन लाख से अधिक शिवलिंग बन चुके हैं और महंत रामेश्वर दास के अनुसार, यह संख्या पूर्णिमा तक सवा पांच लाख पार कर जाएगी। यह आयोजन पिछले छह वर्षों से अखाड़ा परिषद की देखरेख में किया जा रहा है, लेकिन इस बार इसकी भव्यता और सहभागिता पहले से कहीं अधिक है।
भक्ति के साथ जुड़ी है आस्था
पार्थिव शिवलिंग निर्माण की परंपरा सिर्फ धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि गहरी आस्था और मनोकामना पूर्ति से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि मिट्टी से शिवलिंग बनाकर उसका अभिषेक करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और संतान प्राप्ति, सुख-शांति और मनचाहा फल प्रदान करते हैं। हर शिवलिंग पर एक चावल का दाना चिपकाया जाता है, जो पूर्ण समर्पण का प्रतीक माना जाता है।
मिट्टी की इन प्रतिमाओं को काली मिट्टी से विशेष विधि से तैयार किया जा रहा है। छोटे-बड़े हर आकार में बन रहे ये शिवलिंग एक जैसे लगते हुए भी, हर भक्त की अलग भावना को दर्शाते हैं। कई महिलाएं रोज घर के काम निपटाकर यहां आकर कुछ घंटों तक शिवलिंग बनाती हैं। बच्चों में भी इस काम को लेकर उत्साह देखने को मिल रहा है, जिससे यह आयोजन सामूहिक साधना का रूप ले चुका है।
शिप्रा में होगा अंतिम संस्कार
पूर्णिमा के दिन इन सभी शिवलिंगों का सामूहिक अभिषेक और पूजन किया जाएगा। इसके बाद इन्हें शिप्रा नदी में विधिपूर्वक प्रवाहित कर दिया जाएगा, ताकि यह धार्मिक आयोजन संपूर्णता को प्राप्त हो। इस प्रक्रिया को पर्यावरण की दृष्टि से भी संतुलित बताया गया है, क्योंकि यह मिट्टी जल में पूरी तरह घुल जाती है।
