भारतीय टेलीविज़न और फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक दुखद खबर सामने आई है। मशहूर फिल्ममेकर और डायरेक्टर प्रेम सागर, जो कि रामानंद सागर के बेटे थे, का 84 साल की उम्र में निधन हो गया है। प्रेम सागर ने भारतीय टेलीविज़न की दुनिया में कई यादगार शो और कहानियाँ दीं, जिनमें सबसे चर्चित ‘विक्रम और बेताल’ रहा। उनका जाना हिंदी फिल्म और टीवी जगत के लिए एक बड़ी क्षति है।
कौन थे प्रेम सागर?
प्रेम सागर का नाम उस दौर से जुड़ा हुआ है जब भारतीय टेलीविज़न पर धार्मिक और ऐतिहासिक कहानियों का बोलबाला था। वे मशहूर फिल्मकार रामानंद सागर के बेटे थे, जिन्होंने दर्शकों को ‘रामायण’ जैसे सुपरहिट धारावाहिक से जोड़ा। पिता की तरह ही प्रेम सागर भी पौराणिक और लोककथाओं को परदे पर उतारने में माहिर थे।
उनका सबसे प्रसिद्ध काम रहा ‘विक्रम और बेताल’, जो 80 और 90 के दशक में बच्चों और बड़ों, सभी के बीच लोकप्रिय हुआ। यह शो बेताल की कहानियों पर आधारित था, जिसमें हर एपिसोड के अंत में राजा विक्रम को कोई न कोई नैतिक शिक्षा मिलती थी। इस सीरियल ने न सिर्फ मनोरंजन किया बल्कि दर्शकों को सोचने पर मजबूर किया।
योगदान और उपलब्धियाँ
प्रेम सागर ने केवल ‘विक्रम और बेताल’ ही नहीं, बल्कि कई और पौराणिक व ऐतिहासिक प्रोजेक्ट्स पर काम किया। वे सागर आर्ट्स प्रोडक्शन हाउस से जुड़े रहे और अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाते रहे।
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उन्होंने टेलीविज़न में पौराणिक कथाओं को आधुनिक तकनीक से जोड़ने की कोशिश की।
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उनका काम उस दौर में आया जब भारतीय टीवी पर विदेशी कंटेंट की बजाय देसी कहानियाँ लोगों का दिल जीत रही थीं।
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प्रेम सागर ने अपनी कहानियों के जरिए भारतीय संस्कृति, लोककथाएँ और धर्म को दर्शकों तक पहुँचाया।
परिवार और व्यक्तिगत जीवन
प्रेम सागर का परिवार लंबे समय से एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से जुड़ा रहा है। रामानंद सागर के बाद परिवार के कई सदस्यों ने फिल्म और टेलीविज़न में काम किया। प्रेम सागर भी अपने पिता की तरह सरल, सहज और ज़मीन से जुड़े इंसान माने जाते थे।
आज जब टीवी इंडस्ट्री लगातार आधुनिक और ग्लैमरस कंटेंट की ओर बढ़ रही है, ऐसे में प्रेम सागर जैसे फिल्मकारों की कमी और ज़्यादा खलती है। उन्होंने दर्शकों को यह सिखाया कि कहानियाँ केवल मनोरंजन के लिए नहीं होतीं, बल्कि उनमें संस्कार और सीख भी छुपी होती है। ‘विक्रम और बेताल’ जैसा शो आज भी लोगों की यादों में जिंदा है। पुराने एपिसोड्स देखकर आज की पीढ़ी भी समझ सकती है कि उस दौर का कंटेंट कितना सरल और शिक्षाप्रद था।
