आज से शारदीय नवरात्रि शुरु, पहले दिन करे मां शैलपुत्री की पूजा; जानें महत्व और पौराणिक कथा

Author Picture
Published On: 22 September 2025

आज से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो गई है। नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना के साथ मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। शांत और सरल स्वरूप वाली मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल तथा बाएं हाथ में कमल शोभा पाते हैं। नंदी बैल पर सवार होने के कारण इन्हें वृषोरूढ़ा और उमा नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि मां शैलपुत्री की आराधना से साधक को अपार शांति, सामर्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। नौ दिनों तक देवी दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की जाएगी। मंदिरों और घरों में भक्तों ने कलश स्थापना कर मां दुर्गा से सुख-समृद्धि और मंगल की कामना की। देशभर में श्रद्धालु उत्साह और भक्ति भाव से नवरात्रि का पर्व मना रहे हैं।

नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, इस कारण उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। उनका स्वरूप अत्यंत शांत और सरल है। वह नंदी बैल पर सवार होकर भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। इसी दिन से नवरात्रि की पावन शुरुआत होती है।

महत्व

नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा का विशेष महत्व है। मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत दिव्य है, जिनके मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित होता है। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल रहता है तथा उनकी सवारी नंदी बैल है, जिस कारण उन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवी सती ने पुनर्जन्म लेकर पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया और शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं। ऐसा माना जाता है कि मां शैलपुत्री की आराधना करने से भक्त को चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

कथा

नवरात्रि की पौराणिक मान्यता के अनुसार मां शैलपुत्री का पूर्व जन्म सती के रूप में हुआ था। सती भगवान शिव की पत्नी थीं, लेकिन उनके पिता प्रजापति दक्ष ने एक यज्ञ में न तो उन्हें और न ही महादेव को आमंत्रित किया। इसके बावजूद सती यज्ञ में पहुंचीं, जहां उनका और भगवान शिव का अपमान किया गया। अपमान से आहत होकर सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए। इस घटना से भगवान शिव क्रोधित हो उठे और उन्होंने यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। बाद में सती ने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री के नाम से जानी गईं।

पूजा विधि

  • शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री का पूजन किया जाता है।
  • इस दिन पूजा की शुरुआत कलश स्थापना से होती है।
  • सुबह स्नानादि करने के बाद मंदिर को सजाकर कलश स्थापित करें और मां दुर्गा का पूजन आरंभ करें।
  • पूजा के लिए मां के चित्र या प्रतिमा को चौकी पर लाल या सफेद वस्त्र बिछाकर स्थापित किया जाता है।
  • मां को सिंदूर का तिलक लगाकर लाल पुष्प अर्पित करें, साथ ही फल और मिठाई चढ़ाएं।
  • अंत में मां के समक्ष घी का दीपक जलाकर श्रद्धापूर्वक आराधना करें।
  • जीवन के कष्ट और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए भक्त पान के पत्ते पर लौंग, सुपारी और मिश्री रखकर मां शैलपुत्री को अर्पित करते हैं।

भोग

  • नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा का विशेष महत्व है।
  • इस दिन देवी शैलपुत्री को गाय के घी और दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाने का विधान है।
  • खासकर माता को दूध से बनी बर्फी अर्पित करना शुभ माना जाता है।

डिस्केलमर: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं विभिन्न माध्यमों/ ज्योतिषियों/ पंचांग/ प्रवचनों/ मान्यताओं/ धर्मग्रंथों पर आधारित हैं. MPNews इनकी पुष्टि नहीं करता है।

Related News
Home
Web Stories
Instagram
WhatsApp