दिल्ली हाईकोर्ट ने बंधक ऋण के मामले में एक अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि एससी/एसटी अधिनियम का इस्तेमाल बंधक ऋण मामलों में नहीं किया जा सकता। यह फैसला एक्सिस बैंक और सनदेव अप्लायंसेज लिमिटेड के बीच ₹16.68 करोड़ के ऋण विवाद से जुड़ा है।
मामला क्या था?
2013 में एक्सिस बैंक ने सनदेव अप्लायंसेज लिमिटेड को 16.68 करोड़ रुपए का ऋण दिया था। ऋण के बदले कंपनी ने अपनी संपत्ति को बैंक के पास सुरक्षा के तौर पर रखा था। लेकिन कंपनी समय पर भुगतान नहीं कर पाई और बैंक ने उसे एनपीए यानी गैर-निष्पादित संपत्ति घोषित कर दिया। कुछ समय बाद संपत्ति के स्वामित्व को लेकर विवाद उठ गया। इसी के चलते एक पक्ष ने एससी/एसटी आयोग में शिकायत दर्ज कर दी, यह दावा करते हुए कि एससी/एसटी अधिनियम के तहत कार्रवाई होनी चाहिए।
हाईकोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने मामले की सुनवाई के बाद स्पष्ट किया कि बंधक ऋण मामलों में एससी/एसटी अधिनियम लागू नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, “एससी/एसटी अधिनियम के तहत एक्सिस बैंक के एमडी और सीईओ को जारी समन पर रोक लगाई जाती है। बैंक के वैध बंधक अधिकार सुरक्षित रहेंगे।” इसका मतलब साफ है कि बैंक अपनी सुरक्षा संपत्ति का दावा कर सकता है और कंपनी पर वैध तरीके से कार्रवाई कर सकता है। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि किसी भी पक्ष द्वारा अधिनियम का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता।
बैंकों के अधिकारों की सुरक्षा
इस फैसले से यह साफ हो गया कि बैंक अपने बंधक ऋण और अन्य वित्तीय अधिकारों को कानूनी रूप से सुरक्षित रख सकते हैं। अदालत ने यह भी कहा कि ऋण लेने वाले पक्ष को ऋण चुकाने की जिम्मेदारी पूरी करनी होगी और किसी भी सामाजिक या जातिगत कानून का गलत इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए राहत का संदेश है। ऐसे मामलों में अक्सर एससी/एसटी अधिनियम का दुरुपयोग कर बैंकों को दबाने की कोशिश होती थी। अब यह स्पष्ट हो गया कि बंधक ऋण मामलों में बैंक की सुरक्षा संपत्ति और अधिकारों को बाधित नहीं किया जा सकता।
