कार्तिक मास में 3 नवंबर को यानी आज सोम प्रदोष व्रत मनाया जाएगा, जो भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित एक विशेष व्रत है। यह व्रत हर माह में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को दो बार किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से सभी प्रकार के दोष दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। खासकर जब यह तिथि सोमवार को पड़ती है, तो इसे सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है और इसे बहुत शुभ माना जाता है।
कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी के दिन सोम प्रदोष व्रत मनाया जाएगा। इस दिन का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। भक्त इस अवसर पर भगवान शिव की विशेष आराधना करते हैं, जिससे चंद्र दोष निवारण होता है और मनोकामनाएँ पूरी होने की मान्यता है।
सोम प्रदोष व्रत
सोम प्रदोष व्रत, जो भगवान शिव को समर्पित है, प्रत्येक माह में दो बार कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल त्रयोदशी पर यह व्रत 3 नवंबर सोमवार को होगा। इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव की आराधना की जाती है और व्रती दिनभर उपवास रखते हुए शिवजी की पूजा करते हैं। सोम प्रदोष व्रत चंद्र दोष निवारण और मनोकामना पूर्ति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है, इसलिए इसे श्रद्धालु बड़े भक्ति भाव से करते हैं।
शुभ मुहूर्त
प्रदोष व्रत इस बार शाम 5:34 बजे से रात 8:11 बजे तक मनाया जाएगा, जिसमें कुल 2 घंटे 36 मिनट का शुभ मुहूर्त रहेगा। इस समय में सूर्यास्त के बाद और रात्रि से पहले भगवान शिव की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
महत्व
सोम प्रदोष व्रत भगवान शिव और चंद्र देव को समर्पित विशेष धार्मिक व्रत है। यह व्रत करने से व्यक्ति चंद्र दोष से मुक्ति पाता है और उसका स्वास्थ्य उत्तम रहता है। साथ ही, इस व्रत से दीर्घायु और समग्र स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है, इसलिए इसे विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
पूजा विधि
- सोम प्रदोष व्रत में व्रती को सबसे पहले शुद्धि के लिए स्नान करना चाहिए और साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
- इसके बाद भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग की स्थापना कर उन्हें जल, दूध, दही, घी और शहद से अभिषेक करना चाहिए।
- अभिषेक के समय धूप, दीप और लाल फूल अर्पित किए जाते हैं।
- इसके बाद शिव चालीसा या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है।
- व्रत के दौरान फल और ठंडे जल का सेवन कर, उपवास रहकर पूजा पूरी की जाती है।
- इस पूजा से चंद्र दोष निवारण, स्वास्थ्य लाभ और मनोकामना पूर्ति होती है।
डिस्केलमर: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं विभिन्न माध्यमों/ ज्योतिषियों/ पंचांग/ प्रवचनों/ मान्यताओं/ धर्मग्रंथों पर आधारित हैं. MPNews इनकी पुष्टि नहीं करता है।
