उत्पन्ना एकादशी का व्रत अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। जो व्यक्ति इस व्रत का पालन करता है, वह सभी सांसारिक सुखों का अनुभव करके भी अंत में भगवान विष्णु की शरण में पहुँच जाता है। इसे करने से मिलने वाला पुण्य तीर्थों और मंदिरों में दर्शन करने के पुण्य से कई गुना अधिक होता है, साथ ही, व्यतीपात योग, संक्रान्ति, चंद्र-सूर्य ग्रहण में दान देने और कुरुक्षेत्र में स्नान करने से जो पुण्य मिलता है, वह भी इस एकादशी व्रत के पुण्य के बराबर होता है।
उत्पन्ना एकादशी के दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को सभी सुखों की प्राप्ति होती है और अंत में वह सीधे श्री विष्णु जी की शरण में पहुँचता है। इस व्रत का पुण्य तीर्थ यात्रा और दर्शन के पुण्य से भी कई गुना अधिक है।
उत्पन्ना एकादशी
उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने वाले भक्तों को सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं और अंत में वह श्री विष्णु जी की शरण में चले जाते हैं। कहा जाता है कि तीर्थों और मंदिरों में जाकर दर्शन करने से जो पुण्य मिलता है, वह उत्पन्ना एकादशी व्रत के पुण्य के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं होता। इसके अलावा, इस व्रत का पालन व्यतीपात योग, संक्रांति, चन्द्र और सूर्य ग्रहण के समय करने पर भी विशेष फलदायी माना जाता है। इसलिए धर्म और पुण्य की दृष्टि से यह एकादशी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
शुरू करें एकादशी व्रत
उत्पन्ना एकादशी से एकादशी व्रत की शुरुआत होती है। मान्यता है कि एकादशी का जन्म भगवान श्री हरि विष्णु से हुआ था। उत्पन्ना एकादशी के दिन एक देवी प्रकट हुई थीं, जो इस व्रत और उसकी पवित्रता की संरक्षक मानी जाती हैं। इस दिन व्रती लोग निर्जल व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की आराधना करके पुण्य प्राप्त करते हैं। उत्पन्ना एकादशी का व्रत जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति लाने वाला माना जाता है।
महत्व
उत्पन्ना एकादशी व्रत का महत्व बहुत बड़ा माना जाता है। इस व्रत में दश श्रेष्ठ ब्राह्मणों को भोजन कराने से मिलने वाला पुण्य एकादशी के पुण्य के दसवें भाग के बराबर होता है। निर्जल व्रत करने का आधा फल केवल एक बार भोजन करने के बराबर होता है, और इस व्रत में शंख से जल नहीं पीना चाहिए। कहा जाता है कि उत्पन्ना एकादशी का फल हज़ार यज्ञों से भी अधिक होता है।
पूजा विधि
- एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में श्री हरि विष्णु की पूजा की जाती है।
- जिसमें पुष्प, फूल, जल, धूप और अक्षत से विधिपूर्वक आराधना की जाती है।
- इस व्रत में केवल फलाहार ही किया जाता है।
- इसे मोक्षदायक व्रत माना जाता है।
