पृथ्वीराज कपूर बॉलीवुड इतिहास का वो नाम है, जिसने साइकिल से स्टूडियो जाने की शुरुआत की और आगे चलकर 100 से अधिक फिल्मों में काम करके इंडस्ट्री में अपनी मजबूत पहचान बनाई। उनकी मेहनत और एक्टिंग स्किल्स ने कपूर फैमिली को हिंदी सिनेमा का सबसे प्रभावशाली फिल्मी खानदान बना दिया। आज भी कपूर परिवार का दबदबा कायम है।पृथ्वीराज कपूर का सफर संघर्ष से शुरू हुआ था। शुरुआती दिनों में वह साइकिल से स्टूडियो पहुंचते थे और दिनभर शूटिंग करते थे। बाद में उनकी किस्मत बदली और वह उस दौर के सबसे सम्मानित कलाकारों में गिने जाने लगे। उनके जज्बे और काम के प्रति समर्पण ने कपूर खानदान को पीढ़ियों तक बॉलीवुड में सफल बनाए रखा।
किदार शर्मा की आत्मकथा “द वन एंड लोनली: किदार शर्मा” में एक किस्सा मिलता है, जिसमें बताया गया है कि पृथ्वीराज कपूर अपने संघर्ष के दिनों में रोज साइकिल से शूटिंग के लिए जाते थे। रिकॉर्ड के अनुसार, उन्होंने आज़ादी से पहले ही फिल्मों में कदम रख लिया था और धीरे-धीरे इंडस्ट्री में अपनी पकड़ मजबूत की। उस समय के सीमित संसाधनों के बावजूद उनके काम की ईमानदारी ने लोगों को प्रभावित किया। एक्टर, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर के तौर पर उन्होंने 100 से ज्यादा फिल्मों में अपनी पहचान बनाई, जो किसी भी कलाकार के लिए बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।
कपूर परिवार की फिल्मी विरासत
पृथ्वीराज कपूर से शुरू हुआ कपूर खानदान आज भी बॉलीवुड में सबसे बड़ा और प्रभावशाली परिवार माना जाता है। राज कपूर, शम्मी कपूर और शशि कपूर की सफलता ने इसकी नींव और मजबूत कर दी। इसके बाद अगली पीढ़ी ऋषि कपूर, रणधीर कपूर, करिश्मा कपूर, करीना कपूर और रणबीर कपूर ने इस विरासत को और आगे बढ़ाया। हर पीढ़ी ने अपने दौर में दर्शकों को शानदार फिल्में दीं और अपनी एक्टिंग से खास पहचान बनाई। आज रणबीर कपूर कपूर फैमिली की नई धाक जमाते नजर आते हैं, जबकि करीना और करिश्मा अपनी मौजूदगी और काम से अभी भी दर्शकों का दिल जीत रही हैं। इतने लंबे समय तक किसी भी परिवार का लगातार चमकते रहना इसकी गहरी जड़ें और मेहनत का परिणाम है।
मशहूर फिल्मों का असर
पृथ्वीराज कपूर ने 1929 में बेधारी तलवार से फिल्मी करियर की शुरुआत की थी, लेकिन असली पहचान उन्हें 1960 में आई के. आसिफ की क्लासिक फिल्म मुगल-ए-आजम से मिली। इस फिल्म में उन्होंने शहंशाह अकबर की भूमिका निभाई, जिसे आज भी लोग याद करते हैं। उस दौर में ऐसा किरदार निभाना आसान नहीं था, क्योंकि फिल्म के सेट, कॉस्ट्यूम और डायलॉग्स बेहद भारी थे। फिर भी उन्होंने जिस सॉलिड अंदाज में अकबर को पर्दे पर उतारा, वह भारतीय सिनेमा के इतिहास का हिस्सा बन गया। इस फिल्म की सफलता ने न सिर्फ उनकी पहचान को नई ऊंचाई दी, बल्कि कपूर खानदान की चमक को भी और बढ़ाया। उनके काम और अनुशासन ने आने वाली पीढ़ियों को सिखाया कि कैसे मेहनत और लगन से इंडस्ट्री में स्थाई पहचान बनाई जाती है।
