हर साल कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष अष्टमी को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। यह पर्व भगवान शिव के रौद्र रूप, काल भैरव, को समर्पित है और इसे भैरव अष्टमी, भैरव जयंती, काल भैरव अष्टमी या काल भैरव जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस अवसर पर श्रद्धालु मंदिरों में जाकर भैरव स्वरूप की आराधना करते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, काल भैरव की पूजा करने से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और ग्रह दोष, रोग तथा अकाल मृत्यु का भय भी कम होता है। काल भैरव जयंती 12 नवंबर, बुधवार को मनाई जाएगी
काल भैरव जयंती, जिसे भैरव अष्टमी, भैरव जयंती या काल भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है, हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन से नकारात्मक ऊर्जा, ग्रह दोष और सभी प्रकार के भय दूर होते हैं।
काल भैरव जयंती
हर साल कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। यह पर्व भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव को समर्पित है और इसे भैरव अष्टमी, भैरव जयंती या काल भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन काल भैरव की पूजा करने से नकारात्मक ऊर्जा, भय और ग्रह दोष दूर होते हैं। भक्तजन इस अवसर पर उपवास रखते हैं और विशेष विधियों से भैरव भगवान की आराधना करते हैं।
महत्व
काल भैरव जयंती का पर्व भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। काल भैरव, जिन्हें काशी के कोतवाल के रूप में भी जाना जाता है, की पूजा करने से जीवन में भय, शत्रु और विभिन्न बाधाएं दूर होती हैं। इसके अलावा, राहु-केतु या शनि दोष से मुक्ति पाने के लिए भी श्रद्धालु काल भैरव की अराधना करते हैं।
शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 11 नवंबर को रात 11 बजकर 8 मिनट से शुरू होकर 12 नवंबर को रात 10 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी। इस तिथि के अनुसार काल भैरव जयंती 12 नवंबर, बुधवार को मनाई जाएगी। इस वर्ष, पूजा का पहला शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 41 मिनट से सुबह 9 बजकर 23 मिनट तक रहेगा, जबकि दूसरा उत्तम मुहूर्त 10 बजकर 44 मिनट से 12 बजकर 5 मिनट तक रहेगा। इस दौरान भक्त विधिपूर्वक पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
पूजा विधि
- काल भैरव जयंती पर भक्त विशेष श्रद्धा भाव से काल भैरव की पूजा अर्चना करते हैं।
- इस दिन पूजा विधि में सबसे पहले स्वच्छ स्थान पर लाल या काले वस्त्र बिछाकर भगवान का चित्र या मूर्ति स्थापित की जाती है।
- इसके बाद दीपक जलाकर, दूर्वा, चावल, फूल और काले तिल से भैरवजी को प्रसन्न किया जाता है।
- भक्त भैरव चालीसा या विशेष मंत्रों का जप करते हैं और उनके चरणों में जल, मिश्री और नारियल अर्पित करते हैं।
- इस दिन काल भैरव की पूजा से जीवन में भय, शत्रु और ग्रह दोष से मुक्ति मिलने की मान्यता है।
डिस्केलमर: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं विभिन्न माध्यमों/ ज्योतिषियों/ पंचांग/ प्रवचनों/ मान्यताओं/ धर्मग्रंथों पर आधारित हैं. MPNews इनकी पुष्टि नहीं करता है।
