रीवा शहर के सरकारी अस्पतालों में मरीजों की सुरक्षा भगवान भरोसे चल रही है। संजय गांधी मेडिकल कॉलेज, सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, कुशाभाऊ ठाकरे जिला चिकित्सालय और गांधी मेमोरियल अस्पताल जैसे बड़े अस्पतालों में फायर सेफ्टी का एनओसी तक नहीं है। यह वही अस्पताल हैं जहां रोजाना हजारों मरीज इलाज के लिए आते हैं, लेकिन किसी भी इमरजेंसी में जान बचाने का इंतजाम अधूरा है।
नगर निगम के रिकॉर्ड बताते हैं कि इन अस्पतालों को कई सालों से फायर NOC जारी नहीं की गई। निगम की तरफ से बार-बार नोटिस जारी कर अस्पताल प्रबंधन को चेताया गया, लेकिन नतीजा सिफर रहा। नगर निगम आयुक्त सौरभ सोनवड़े ने साफ कहा है कि अगर आगजनी जैसी कोई दुर्घटना होती है, तो पूरा जिम्मा अस्पताल प्रबंधन का होगा।
हकीकत में खतरा
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अक्षय श्रीवास्तव का दावा है कि उनके यहां फायर सिस्टम मौजूद है और एक आउटसोर्स कंपनी इसकी देखरेख करती है। उन्होंने कहा कि “हम समय-समय पर मॉकड्रिल भी करते हैं।” हालांकि जब उनसे पूछा गया कि फायर पाइपलाइन में पानी नहीं है, तो उन्होंने सीधा जवाब देने के बजाय कहा, “ये फायर इंजीनियर ही बता पाएंगे।” यानी जिम्मेदारी का खेल यहां भी साफ नजर आया।
वहीं, संजय गांधी अस्पताल, जो पूरे विंध्य का सबसे बड़ा मेडिकल सेंटर माना जाता है, वहां भी हालात अलग नहीं हैं। पुराने बिल्डिंगों में आग लगने पर न तो अलार्म बजते हैं, न ही कोई इमरजेंसी निकास का सही इंतजाम है।
हम बात करेंगे, हो जाएगा: उपमुख्यमंत्री
जब इस गंभीर मामले पर उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल से सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि हम अस्पताल प्रबंधन से बात करेंगे, सब हो जाएगा, लेकिन सवाल यह है कि “कब होगा?” क्योंकि नोटिस, वादे और दावे तो सालों से चल रहे हैं, पर मरीजों की सुरक्षा आज भी अधर में लटकी है। रीवा के चारों बड़े अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलेंडर, दवाओं के केमिकल और पुराने वायरिंग सिस्टम हमेशा संभावित खतरे की वजह बने रहते हैं। इसके बावजूद फायर NOC का न होना सीधा सिस्टम की लापरवाही दिखाता है। नगर निगम का कहना है कि वह और सख्त कदम उठाने पर विचार कर रहा है, लेकिन जब तक अस्पताल खुद नहीं जागेंगे, तब तक यह खतरा हर दिन बढ़ता ही रहेगा।
