विनायक चतुर्थी आज, गणेश जी की पूजा से प्राप्त करें शांति और समृद्धि; जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

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Published On: 24 November 2025

मार्गशीर्ष मास की विनायक चतुर्थी 24 नवंबर, सोमवार को मनाई जा रही है। यह हर माह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को आती है और भगवान गणेश को समर्पित होती है। इस वर्ष की विनायक चतुर्थी को कृच्छ्र चतुर्थी कहा जा रहा है और माना जाता है कि यह तिथि भक्तों के लिए सुख-समृद्धि और ज्ञान का नया द्वार खोलेगी।

विनायक चतुर्थी को महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर मनाया जाता है और यह भगवान गणेश को समर्पित पवित्र व्रत माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि भक्त इस दिन व्रत रखे और विशेष रूप से मध्याह्न (दोपहर) काल में गणेश जी की पूजा करे तो उनके जीवन में आने वाली विघ्न‑बाधाएं दूर हो जाती हैं।

विनायक चतुर्थी

विनायक चतुर्थी हर माह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है और यह पर्व भगवान गणेश को समर्पित है। इस वर्ष मार्गशीर्ष मास की विनायक चतुर्थी 24 नवंबर, को है, जिसे कृच्छ्र चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और मध्याह्न काल में गणेश जी की पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यता है कि विनायक चतुर्थी पर भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा करने से जीवन में आने वाली बाधाएं और विघ्न दूर होते हैं तथा सुख-समृद्धि और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

महत्व

विनायक चतुर्थी का व्रत विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और मध्याह्न में भगवान गणेश की पूजा करने से भक्तों के जीवन की सभी विघ्न और बाधाएं दूर हो जाती हैं। यह दिन बुद्धि, ज्ञान, समृद्धि और व्यापार में सफलता के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, मार्गशीर्ष महीने की विनायक चतुर्थी का विशेष महत्व है और स्कंदपुराण में उल्लेख है कि इस कृच्छ्र चतुर्थी से लगातार चार वर्षों तक व्रत करने से सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं।

शुभ मुहूर्त

कृच्छ्र चतुर्थी इस वर्ष 24 नवंबर 2025, सोमवार को मनाई जा रही है। मार्गशीर्ष माह की चतुर्थी तिथि 23 नवंबर की शाम 7:24 बजे से प्रारंभ होकर 24 नवंबर को रात 9:22 बजे तक रहेगी। इस दिन चतुर्थी का मध्याह्न मुहूर्त यानी पूजा का समय सुबह 11:04 बजे से दोपहर 1:11 बजे तक रहेगा, जिसकी अवधि 2 घंटे 7 मिनट है।

पूजा विधि

  • विनायक चतुर्थी के अवसर पर भक्त जल्दी उठकर स्नान करके लाल या पीले वस्त्र धारण करते हैं
  • स्वच्छ पूजा स्थल पर भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर स्थापित कर व्रत एवं पूजन का संकल्प लेते हैं।
  • इसके बाद गंगाजल या पंचामृत से गणेश जी का अभिषेक किया जाता है और उन्हें रोली-चंदन का तिलक लगाया जाता है।
  • पूजा में दूर्वा की 21 गांठें, लाल फूल और माला चढ़ाई जाती है, साथ ही धूप, दीप और अगरबत्ती जलाए जाते हैं।
  • भोग में मोदक या लड्डू अर्पित किया जाता है।
  • ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का 108 बार जाप तथा गणेश चालीसा का पाठ किया जाता है।
  • अंत में कपूर या घी के दीपक से आरती की जाती है और प्रसाद परिवार के सदस्यों एवं जरूरतमंदों में बांटा जाता है।

डिस्केलमर: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं विभिन्न माध्यमों/ ज्योतिषियों/ पंचांग/ प्रवचनों/ मान्यताओं/ धर्मग्रंथों पर आधारित हैं. MPNews इनकी पुष्टि नहीं करता है।

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